ENG | HINDI

इस युद्ध में सवा लाख से सिर्फ एक लड़ा था और धूल में मिला दी थी दुश्मन की सेना !

Guru Govind Shinghji

भारत के इतिहास में ऐसी-ऐसी कहानियां दर्ज हैं जिसको पूरे विश्व के किसी भी हिस्से से टक्कर नहीं प्राप्त हो सकती है.

हजारों सालों पहले भी यह बात सभी जानते थे कि भारत पर राज करना बच्चों का खेल नहीं है. ना जाने कितने लोगों ने भारत पर आक्रमण किया और कितने धूल में मिला दिए गये.

अंतिम समय जो मुख्य गलती मानी जा सकती है वह यही थी कि सभी अलग-अलग हो गये थे.

इसी बिखराव का फायदा विदेशी मुस्लिम शासकों ने उठाया था.

आज हम आपको भारतीय इतिहास के ऐसे ही एक अध्याय से वाकिफ करा रहे हैं जो वर्तमान में गुमनामी की दुनिया में दफ़न हो गया है. आज अगर किसी को यह कहानी याद करानी होती है तो उस व्यक्ति को ना जाने क्या-क्या बताना पड़ता है. लेकिन याद रखें कि आप इस महान और अद्भुत युद्ध को भूल गये हैं आप सच्चे भारतीय नहीं हैं.

इस युद्ध में सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के नेतृत्व में 40 सिक्खों का सामना वजीर खान के नेतृत्व वाले 10 लाख मुग़ल सैनिकों से हुआ था. वजीर खान किसी भी सूरत में गुरु गोविंद सिंह जी को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता था क्योंकि औरंगजेब की लाख कोशिशों के बावजूद गुरु गोविंद सिंह मुग़लों की अधीनता स्वीकार नहीं कर रहे थे. लेकिन गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों सहित 40 सिक्खों ने गुरूजी के आशीर्वाद और अपनी वीरता से वजीर खान को अपने मंसूबो में कामयाब नहीं होने दिया और 10 लाख मुग़ल सैनिक भी गुरु गोविंद सिंह जी को नहीं पकड़ पाए थे.

पढ़ते हैं क्या लिखते हैं गुरु गोविंद सिंह जी

गुरु गोविंद सिंह ने इस युद्ध का वर्णन “जफरनामा” में करते हुए लिखा है-

” चिड़ियों से मै बाज लडाऊ गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ.
सवा लाख से एक लडाऊ तभी गोबिंद सिंह नाम कहउँ,”

इस युद्ध की तारीख बताते हुए इतिहास में लिखा गया है कि 22 दिसंबर 1904 को सिखों के दसवें गुरु को पकड़ने के लिए  सिरसा नदी के किनारे एक युद्ध हुआ था. इस युद्ध को चमकौर का युद्ध बोला जाता है. एक तरफ मात्र 40 सैनिक थे और दूसरी 10 लाख लोग थे.

गुरू गोविन्द जी का पीछा काफी पहले से किया जा रहा था और गुरुगोविंद जी अब तक कई मुश्किलों का सामना करते चमकौर के मैदान तक आ गये थे. सभी को पता था कि हमारे पास मात्र 40 लोग हैं जो लड़ सकते हैं लेकिन खालसा पंथ की एक कसम होती है जिसमें सभी को मरना तो स्वीकार होता है किन्तु कोई भी समर्पण नहीं करता है.

जब वजीर खान को पता चला कि इस्नके पास मात्र 40 सैनिक हैं तो वह अपनी पूरी सेना के साथ गुरूजी पर टूट पड़ता है और तभी यह 40 लोग भी लड़ना शुरू करते हैं.

कहते हैं कि यह 40 लोग ऐसे लड़े थे जैसे कि कोई पूरी करोड़ों लोगों की सेना लड़ती है. गुरूजी हर बार मात्र अपने 5 लोग युद्ध में भेजते थे और हर योद्धा लाख लोगों के बराबर लड़ रह था.

इस युद्ध के अंत में बताया जाता है कि गुरु गोविन्द सिंह जी को कोई भी नहीं पकड़ सका और मुग़ल सेना को डरकर युद्ध के मैदान से भागना पड़ा था.

लेकिन इस युद्ध में गुरु जी के दो पुत्रों साहिबज़ादा अजीत सिंह व साहिबज़ादा जुझार सिंह ने शहीदी प्राप्त की थी.