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क्या महाभारत के पांडव विदेशी शासक थे? या फिर महाभारत मात्र एक कहानी है? पढ़िए एक अंतिम सत्य

The Real Story Behind Mahabharat

अगर आपसे कोई कहे कि महाभारत के पांडव विदेशी थे तो निश्चित रूप से आप उस पर हंसना शुरू कर देंगे.

या कोई कहे कि महाभारत मात्र एक कहानी है तो आप बोलेंगे कि वह व्यक्ति पागल हो गया है.

लेकिन हो सकता है कि वाकई में ऐसा कुछ हुआ ही ना हो. तो सबसे पहले हम महाभारत काव्य रचना के पीछे जुड़ी कहानी को समझते हैं.

क्यों और कैसे महाभारत की रचना हुई

वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफ़ा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली थी. परन्तु इसके पश्चात उनके सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई कि इस महाकाव्य के ज्ञान को सामान्य जन साधारण तक कैसे पहुँचाया जाये, क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन कार्य था कि कोई इसे बिना किसी त्रुटि के वैसा ही लिख दे, जैसा कि वे बोलते जाएँ. इसलिए ब्रह्मा के कहने पर व्यास जी भगवान गणेश के पास पहुँचे. गणेश लिखने को तैयार हो गये.

इस प्रकार सम्पूर्ण महाभारत तीन वर्षों के अन्तराल में लिखी गयी.

तो क्या पांडव विदेशी थे?

अब जैसे कि एक वर्ग भारतीय इतिहास में लिखता है कि उत्तर-वैदिक काल में कौरवों का उत्थान गौरवशाली था. और यहाँ पर सूत्रों में कहीं भी पांडवों का उल्लेख नहीं है. तो अपनी रिसर्च के आधार पर कुछ विद्वान बोलते हैं कि पांडव करवों के सपिंड न होकर विदेशी आगंतुक थे.
आगे यह लोग लिखते हैं कि जैसा कि इतिहास बताता है कि पांडवों में कुछ हद तक असभ्य आचरण था, उनके बहुपतिक विवाह और उनके नाम की ‘पांडु’ “पीत” से भी यही संज्ञा मिलती है.

यहाँ यह लेखक बताते हैं कि इनकी पांडुता से इसके मंगोली होने का अनुमान किया जाता है.

इसी प्रकार महाभारत के युद्ध पर भी संदेह किया जाता है. महाभारत में जिन-जिन राजाओं या जातियों ने हिस्सा लिया बताया गया है वह बहुत दूर-दूर थीं उनका यहाँ से कोई रिश्ता नहीं था तो वह इस युद्ध में हिस्सा क्यों ले रही थीं.

आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ. नवीनतम शोधानुसार यह युद्ध 3067 ई. पूर्व में हुआ था. युद्ध के बाद तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है.

मुख्य रूप से जो बात कही जाती है वह यह है कि कौरव और पांडव एक वंश के नहीं थे. कुछ लोग बताते हैं कि कौरव कुरू वंश के नहीं थे. कुरू का राज देश में नहीं चला है.

यहाँ तक कि महाभारत में काफी जगह पर अनेतिहासिकता के प्रमाण मौजूद हैं. काफी जगह पर चीजों को तथ्यों से अलग बताया गया है. पांडवों ने युद्ध जीता था किन्तु वह लोग धर्मीं नहीं रहे हैं.

कोई भी व्यक्ति जो धर्म का पालन कर  रहा है वह जुए में अपनी पत्नी का दांव नहीं लगा सकता है.

अब आप एक बात पर ध्यान दें कि कहा जाता है कि इस युद्ध में विदेशी लोग भी शामिल हुए थे. तो अब बतायें कि कोई विदेशी राजा बिना बात के अपनी सेना को क्यों मारना चाहेगा?

तो पांडव या कौरव किसी का तो संबंध विदेशी लोगों से रहा होगा.

कुलमिलाकर अभी आवश्यकता है कि इस बात की तय तक जाया जाए और महाभारत की सत्यता के प्रमाण तलाशे जायें.