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दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति के बारे में नहीं जानते होंगे ये बातें

सबसे ऊंची मूर्ति

सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन बुधवार को पीएम मोदी ने किया. ये मूर्ति दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है. आज पटेल की जयंति के मौके पर मूर्ति का उद्घाटन हुआ है.

इस मूर्ति की ऊंचाई न्यूयॉर्क की स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से दोगुनी है.

चलिए आपको बताते हैं दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति से जुड़ी कुछ खास बातें.

  • गुजरात में नर्मदा बांध के किनारे बनी ये मूर्ति न सिर्फ विश्व में सबसे ऊंची है बल्कि सबसे कम टाइम में तैयार भी हुई है. 182 मीटर की इस मूर्ति को बनने में सिर्फ 33 महीने का वक्त लगा.
  • मूर्ति को लॉर्सन एंड टूब्रो कंपनी ने बनाया है. इसे बनाने में 2,989 करोड़ रुपए का खर्च आया. स्टैचू ऑफ यूनिटी के बाहरी परत को बनाने में 1,700 टन पीतल का इस्तेमाल हुआ है. मूर्ति के अंदर की बनावट में कंक्रीट सीमेंट और स्टील का इस्तेमाल हुआ है.

  • मूर्ति के अंदर एक हाई स्पीड एलिवेटर लगाई गई है. इसके जरिए मूर्ति की छाती तक पहुंचा जा सकता है और नर्मदा डैम को ऊंचाई से देखने का लुत्फ उठाया जा सकता है. इस लिफ्ट में एक बार 200 लोग आ सकते हैं.
  • इस जगह को टूरिस्टों के लिए आकर्षक बनाने के मकसद से यहां एक थ्री स्टार होटल, एक म्यूजियम और एक ऑडियो विजुअल गैलरी बनाई गई है.
  • सरदार पटेल की इस मूर्ति को बनाने में कई पेंच थे. न सिर्फ इसकी लंबाई बल्कि नर्मदा नदी के बीच में बनाना भी एक चैलेंज था.

  • मूर्ति को 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार वाली तेज हवाओं के साथ साथ रिक्टर स्केल पर 6.5 की तीव्रता वाला भूकंप आने पर भी कोई नुकसान नहीं होगा
  • इस मूर्ति को नोएडा के मूर्तिकार राम वी सूतर ने डिजाइन किया है, मूर्ति चीन में बनी है जिसमें 200 चीनी मजदूरों का भी योगदान रहा.
  • गुजरात सरकार केवदिया शहर से आने वाले लोगों के लिए 3.5 किलोमीटर लंबा हाईवे बना रही है.

  • मूर्ति को बनाने के लिए पूरे देश के गांवों से 135 मीट्रिक टन लोहा मांगा गया है. इसमें चार जंगरोधी धातुओं का इस्तेमाल हुआ है.
  • यहां पर सेल्फी क्लिक करना बहुत ही आसान होगा. इस जगह पर एक सेल्फी प्वाइंट बनाया गया है जिससे लोग आराम से सेल्फी क्लिक कर पाएं.
  • इस मूर्ति को बनाने की नींव 31 अक्टूबर, 2013 को पटेल की 138वीं वर्षगांठ के मौके पर रखी गई थी, तब पीएम नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

महापुरुषों का सम्मान करना अच्छी बात है, लेकिन सम्मान के नाम पर 3 हजार करोड़ खर्च करना क्या समझदारी है. अगर इन पैसों को देशवासियों की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जाता, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने पर खर्च होता तो क्या ज़्यादा अच्छा नहीं रहता. आपकी क्या राय है?

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