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ऐसा क्या है इस संत में जो अकेला ही हिला देता है सरकार

स्वामी शिवानंद सरस्वती

हरिद्वार और ऋषिकेश के बीच गंगा किनारे एक टूटा फूटा आश्रम और उसमें एक पतला दुबले शरीर वाला व्यक्ति और सामने हिंदी अंग्रेजी अखबारों का अंबार. पहली नजर में देखने पर आपको ये आम संत की तरह लगेंगे.

लेकिन ये कोई आम संत नहीं है बल्कि मातृसदन आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती है.

स्वामी शिवानंद सरस्वती और उनका मातृसदन 13 जून 2011 को पहली बार उस वक्त चर्चा में आया था जब गंगा में अवैध खनन को लेकर उनके 34 वर्षीय शिष्य स्वामी निगमानंद ने 115 दिन तक अनशन करनेके बाद अपने प्राण त्याग दिए थे.

बताया जाता है कि स्वामी शिवानंद सरस्वती के आश्रम में कई ऐसे शिष्य है जो उनकी एक आवाज पर गंगा के लिए प्राण त्याग सकते हैं. गंगा को लेकर स्वामी शिवानंद सरस्वती और उनके शिष्यों की प्रतिबद्धता को देखकर हरिद्वार जिला प्रशासन ही नहीं उत्तराखंड सरकार भी घबराती है.

स्वामी शिवानंद की सबसे बड़ी ताकत उनकी सादगी और तप है. जिसके कारण आज भारत से अधिक विदेशों में उनके शिष्य और उनके समर्थक हैं. इसके अलावा स्वामी शिवानंद सरस्वती और मातृसंदन की ताकत उनका किसी बात को शास्त्रों के साथ वैज्ञानिक तरीके से रखना है.

स्वामी जी के शिष्यों में अधिकांश आईआईटी और अन्य उच्च शिक्षा प्राप्त हैं. स्वयं स्वामी जी भी रसायन विज्ञान के रिटार्यड प्रोफेसर हैं.

आपको बता दें की गंगा नदी में खनन पर रोक को लेकर सन् 1998 से मातृसदन का आंदोलन चल रहा है. अवैध खनन के विरोध में अनशन करते हुए 13 जून 2011 को मातृसदन के स्वामी निगमानंद की मौत होगई थी.

लेकिन गंगा में अवैघ खनन रोकने को लेकर कोई कार्रवाई न होते देख एक बार फिर स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कमान अपने हाथों में ले ली. और गंगा में खनन को लेकर 27 नवंबर को अनशन पर बैठ गए. इससे पहले स्वामी शिवानंद ने 22 दिन से अनशन पर बैठे अपने शिष्य ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का अनशन समाप्त कराया.

मातृ सदन में पत्रकारों से बातचीत में अपने सयंम व्रत का एलान करते हुए स्वामी शिवानंद ने कहा कि सरकार अकर्मण्यता के लिए स्वामी निगमानंद की तरह वह अपने किसी भी शिष्य की बलि नहीं होने देना चाहते.

यही वजह है कि गंगा में अवैध खनन रोकने की मांग को लेकर तपस्या कर रहे मातृसदन आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी सरस्वती ने 3 दिसंबर से जल त्याग दिया. उनके इस कदम से प्रशासनिक अधिकारी को हाथपांव फूल गए और वे रात को उनसे वार्ता को पहुंचे थे, लेकिन उन्होंने तप (अनशन) समाप्त करने व वार्ता से इन्कार कर दिया.

खबर है कि स्वामी जी 27 नवबंर से न तो किसी से फोन पर बात कर रहे है ओर न ही किसी प्रशानिक अधिकारी को मातृ सदन के अंदर प्रवेश करने दे रहे है.

आप को बता दे कि स्वामी शिवानंद ने कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत हरिद्वार के लिए अभिशाप बताते हुए आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हरीश रावत पर उनकी हत्या कराने की साजिश रच रहे हैं. इसखबर के मीडिया में आने के बाद सरकार के हाथ पैर फूल गए हैं और वे स्वामी शिवानंद का अनशन तुड़वाने के लिए रास्ते तलाशने में जुट गए हैं.