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आत्महत्या आपके जीवन का अंत है आपकी और आपके परिवार की समस्याओं का नहीं !

कहते हैं कि सुख और दुख जीवनरुपी सिक्के के दो पहलू हैं, इसलिए जीवन में सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख का आना स्वाभाविक है.

इंसान अपने सुखी जीवन के हर लम्हों को बड़े ही आनंद से जीता है लेकिन वही इंसान अपने जीवन में आनेवाले दुखों से बेहद घबरा जाता है. जी हां, ऐसे ना जाने कितने ही लोग हैं जो अपने जीवन के दुख और परेशानियों से तंग आकर अपने जीवन का खात्मा यानी खुदकुशी करने के बारे में सोचने लगते हैं.

कभी कोई छात्र फेल होने जाने पर आत्महत्या कर लेता है, तो कोई अपनी गरीबी और लाचारी के आगे बेबस होकर मौत को गले लगा लेता है. जबकि कई लोग अपने जीवन की समस्याओं से पीछा छुड़ाने के लिए मौत को गले लगाना बेहतर समझते हैं.

लेकिन आत्महत्या जैसा कायरता भरा कदम उठाने वाले लोग ये क्यों नहीं सोचते कि आत्महत्या करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि ऐसा करके वो अपने परिवार वालों को अपनी मौत से ऐसा जख्म दे जाते हैं जो ताउम्र उन्हें दर्द ही देता है.

आखिर क्यों आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं लोग?

दरअसल इंसान के जीवन में कई ऐसी समस्याएं आती हैं जिनसे उन्हें बाहर निकलने का रास्ता नजर नहीं आता, ऐसे में वो मौत को गले लगाना ही बेहतर समझते हैं.

घरेलू हिंसा, आर्थिक परेशानी, घर-परिवार में अशांति, मानसिक बीमारी, लाइलाज शारीरिक बीमारी, नशीली चीजों की लत, कार्यक्षेत्र में यौन उत्पीड़न और परीक्षा में फेल होना जैसी समस्याएं लोगों को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती हैं.

एक शोध में यह खुलासा हुआ है कि अधिकांश ऐसे युवा आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं जो अपने माता-पिता और समाज की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते हैं.

आंकड़ों पर गौर करें तो दुनियाभर में हर साल करीब 8000 लोग आत्महत्या करते हैं जिनमें करीब 17 फीसदी भारतीय शामिल हैं.

बुद्धिमानी नहीं कायरता की निशानी है आत्महत्या करना

वैसे जीवन में कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान ना हो, लेकिन अपने जीवन की छोटी-मोटी परेशानियों से तंग आकर आत्महत्या जैसा कदम उठाना बुद्धिमानी नहीं बल्कि इंसान की सबसे बड़ी कायरता है.

इंसान जब अपनी परेशानियों को देखकर घबरा जाता है तो ऐसे में वो उससे बाहर निकलने के बारे में सोच नहीं पाता और जिंदगी के प्रति उसका गलत नजरिया उसे मौत के करीब ले जाता है.

आत्महत्या करनेवाले लोग आखिर ये क्यों नहीं सोचते कि आत्महत्या करना ना तो उनकी बुद्धिमानी है और ना ही उनकी किसी समस्या का हल.

आत्महत्या जैसा कदम सिर्फ कायर लोग ही उठाते हैं क्योंकि जिन लोगों के भीतर साहस होता है वो अपने जीवन में आनेवाले तमाम संघर्षों का डटकर सामना करते हैं और जिसमें संघर्ष  ना हो वो जीवन ही क्या.

जरा सोचिए, आपकी मौत के बाद क्या होगा परिवार वालों का हाल?

आत्महत्या करके आप भले ही अपने इस जीवन से मुक्त हो जाएंगे लेकिन जरा सोचिए क्या इससे आपकी सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी? आपके मृत शरीर को देखकर आपके माता-पिता या आपके करीबियों पर क्या गुजरेगी?

मौत को गले लगाकर आप तो मुक्त हो जाएंगे लेकिन ऐसा करके आप अपने परिवार वालों को कभी ना भरनेवाले जख्म के साथ अपने ना होना का ऐसा एहसास दे जाएंगे जिसे वो चाहकर भी नहीं भूला पाएंगे.

किसी ने सच ही कहा है कि हमारा जीवन बहते हुए पानी की तरह एकदम सरल है लेकिन उसे जटिल बनाने के लिए हम ही जिम्मेदार हैं क्योंकि अपनी सोच के जरिए हम अपने जीवन को अच्छा या बुरा बना देते हैं.

ना जाने क्यों, हम खुद इस कड़वी हकीकत को नहीं समझना चाहते कि अपने जीवन को उलझाकर रखने से हम भीतर ही भीतर हर रोज हजार मौत मरते हैं और ये मौत उस मौत से कही ज्यादा दुखदायी और दर्दनाक है जो जीवन में सिर्फ एकबार आती है.

इसलिए ये हमें ही तय करना होगा कि हमें अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर समय से पहले मौत को गले लगाना है या फिर इनका सामना करके एक विजेता की तरह इन समस्याओं पर जीत हांसिल करनी है. क्योंकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर जीवन हमें समस्याएं देती है तो फिर उससे बाहर निकलने के कई अवसर भी प्रदान करती है.

गौरतलब है कि इंसान का जीवन ईश्वर की दी हुई एक अनमोल भेंट है और आत्महत्या करनेवाले इंसान को तो भगवान भी कभी माफ नहीं करते. इसलिए अपने इस अनमोल जीवन का मोल समझें, अपने माता-पिता और परिवारवालों को बेसहारा छोड़कर जाने के बजाय उनका सहारा बनने की सोचें.

जीवन की तकलीफों से डरने के बजाय एक वीर योद्धा की तरह डटकर उसका मुकाबला करें और जब भी मन में आत्महत्या का ख्याल आए तो कोई भी गलत कदम उठाने से पहले ये जरूर सोच लें कि आत्महत्या करना कायरों का काम है आपका नहीं.