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माता पार्वती ने अपने ही पुत्र को श्राप क्यों दिया?

kartikeya

जब बात माँ और बेटे की होती हैं, तो यही कहा जाता हैं कि कोई भी बात हो जाए माँ अपने बच्चे की रक्षा के लिए कुछ भी कर जाती हैं.

लेकिन आप इस बात पर क्या कहेंगे कि पूरी दुनिया जिन पार्वती माँ को पुजती हैं, उन्होंने एक बार अत्यधिक क्रोधित होकर खुद के पुत्र कार्तिक को ही श्राप दे दिया था.

इस पूरी घटना के पीछे हिन्दू के ‘स्कन्दपुराण’ में एक कथा हैं.

भगवान शिव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री सती से हुआ था.

एक बार राजा दक्ष ने अपने महल में एक यज्ञ का आयोजन किया था लेकिन इस यज्ञ में राजा दक्ष ने भगवान शिव और सती को नहीं बुलाया था. सती फिर भी इस यज्ञ में बिना किसी आमन्त्रण के ही पहुची थी.

राजा दक्ष अपनी पुत्री सती के यज्ञ में इस तरह आ जाने से गुस्से में उनका और भगवान शिव का अपमान कर दिया. अपने पति के इस अपमान से सती दुखी होकर उसी यज्ञ अग्नि में खुद को भस्म कर लिया था. सती की इस मृत्यु से भगवान शिव क्रोधित होकर कई वर्षों की साधना में लीन हो गए थे. इस पुरे समय में समस्त धरती पर ताड़कासुर नाम के राक्षस का आतंक बहुत बढ़ गया था. सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास इस समस्या को लेकर पहुचे, तब भगवान् ब्रह्मा ने बताया कि इस राक्षस का वध भगवान शिव के पुत्र कार्तिक के हाथों ही होगा. तब हिमालय राज के घर माता पार्वती ने जन्म लिया और भगवान शिव का उनसे विवाह हुआ और शिव-पार्वती को पहला पुत्र कार्तिक के रूप में प्राप्त हुआ था. जिसने अपने बालकल्या में ही ताड़कासुर जैसे राक्षस का वध कर संसार की रक्षा की थी.

ताड़कासुर के अंत बाद एक दिन भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ चौसर खेलने की बात कही, लेकिन चौसर के खेल में भगवान् शिव ही अपना सब कुछ हार गए.

नौबत यह आ गयी कि उन्हें अपने शरीर को ढकने के लिए पत्ते लपेटना पड़े. खेल के बाद भोलेनाथ वह से उठ कर चले गए और वहां कार्तिक आये. माता पार्वती ने कार्तिक को जब सारी बात बताई तो कार्तिक ने कहा कि आप मेरे साथ चौसर खेलिएँ. माता पार्वती और कार्तिक के बीच हुए खेल में कार्तिक ने खेल जीत लिया और अपने पिता के वस्त्र भी ले गए. अपनी हार से माता पार्वती उदास हो गई  कि खेल भी गया और पति भी रूठ गए. गणेश को जब अपनी माँ की यह उदासी पता चली तो उन्होंने ने कहा कि मैं जाकर भगवान् शिव के साथ यह खेल खेलूँगा. भगवान् शिव के पास जाकर गणेश ने गंगा किनारे चौसर का खेल खेला और जीत कर वापस अपनी माता के पास लौटें.

माता पार्वती ने जब गणेश को अकेले आते देखा तो भगवान् शिव के बारे में पूछा कि तुम्हारे पिता साथ क्यों नहीं आये?

तब गणेश ने बताया की वह आपसे क्रोधित हैं और कही चले गए हैं. इस बात से माता पार्वती और अधिक उदास हो गयी. अपनी माता को उदास देखा कर मातृभक्त गणेश भगवान् शिव को खोजने निकले.

भोलेनाथ तब हरिद्वार में भगवान् विष्णु और कार्तिक के साथ विचरण कर रहे थे.

गणेश वहां पहुच कर भगवान् शिव को माता पार्वती की सारी व्यथा सुनाई, लेकिन भगवान शिव ने एक शर्त रखी कि अब चौसर का खेल वह हमारे दिए पासे से खेलेंगे तभी इस समस्या का कोई समाधान हो सकता हैं.

पार्वती माता मान गयी और चौसर खेलने के लिए तैयार हो गयी. इस बार भगवान् शिव हर चाल जीत रहे थे तब माता पार्वती को गणेश के माध्यम से ज्ञात हो गया कि जिस पासे से भोलेनाथ अपनी हर चाल जीत रहे हैं, उन पासों के रूप में उसमे भगवान् विष्णु विराजमान हैं, जो इस छल में भगवान् शिव के सहभागी हैं.

माता इस बात से नाराज़ होकर इस छल में शामिल सभी को श्राप दे दिया.

भोलेनाथ को श्राप दिया कि वह हर वक़्त अपने सर पर गंगा को थामे रहेंगे. भगवान् विष्णु को कहा कि त्रेतायुग में रावण आपका शत्रु होगा और कार्तिक को कहा कि तुम इसी तरह हमेशा अपने बालकाल्या में ही रहोगे.

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