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गुम हो गए वो खेल जिन्हे अपनी यादों में आज भी समेटे हुए हैं हमारा बचपन

वो बचपन के खेल

वो बचपन के खेल- बचपन का दौर बहुत ही सुनहरा होता है और अपने साथ ढ़ेरों खूबसूरत लम्हों को समेटे होता है।

बचपन की वो ढ़ेर सारी शैतानियां, मुट्ठियों में दुनिया जीत लेने के सपने, वो नटखट अटखेलियां, कभी बेमतलब हंस जाना तो कभी छोटी सी बात पर आंसू बहाना, कभी मम्मी से लाड लडाना तो कभी पापा से अपनी फरमाइशें पूरी करने के लिए ज़िद पर अड़ जाना।

बचपन के खेल

ये सब बचपन की वो यादें हैं, वो बातें है जो सभी के ज़ेहन में हैं और बचपन से जुड़ी इन्ही खूबसूरत यादों में शुमार है, वो बचपन के खेल, बचपन के वो खूबसूरत खेल, जिन्हे खेलते खेलते दिन कब बीत जाता था, कुछ पता ही नहीं चलता था।

स्कूल से आकर जल्दबाजी में ही सही पर खाना खाना, होमवर्क करना और उसके बाद मोहल्ले के दोस्तों की टोली के साथ खेलने के लिए निकल जाना और अगर खेलते वक्त कोई ज़रा सा भी डिस्टर्ब कर दे तो बस पूरा मूड ही बिगड़ जाया करता था।

बचपन के खेल

जी हां, वो बचपन के खेल और बचपन का वो दौर कुछ ऐसा ही था जब ना केवल हमें खेल खेलना अच्छा लगता था बल्कि हमारा कोई भी दिन बिना खेल खेले पूरा नहीं हुआ करता था।

बचपन के खेल

याद कीजिए, कभी गली में दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना, कभी कैरम खेलते हुए खाने-पीने का मज़ा लेना, तो कभी लूडो में एक-दूसरे की गोटी काटने पर ऐसी खुश होना जैसे जहां ही जीत लिया हो।

बिजनेस में ढ़ेर सारे शहर खरीद कर करोड़पति बन जाना, तो कभी पकड़म पकड़ाई खेलते हुए ऊधम मचाना, कभी अन्ताक्षरी खेलते हुए वक्त बिताना, एक टांग पर चलते हुए एक-दूसरे को पकड़ने की कोशिश करना ये कुछ ऐसी बातें थी जिनके बिना बचपन पूरा ही नहीं हुआ करता था लेकिन अब ये सब बातें कहीं सिमट सी गईं है। खेलों की वो दुनिया मानो कही गुम ही हो गई है।

अब ना तो गलियों में क्रिकेट का हल्ला होता है और ना ही पकड़म पकड़ाई का शोर, लूडो और कैरम भी खेले तो जाते हैं लेकिन बस मोबाइल पर, बचपन के वो खूबसूरत खेल कही गुम से हो गए हैं।

डिब्बा आईस-पाईस, याद कीजिए कभी सुनी है ये आवाज़, जो अभी के दौर के बच्चे हैं उन्होने तो ये शब्द शायद ही सुना हो लेकिन हम जब बच्चे रहे थे तब ये शब्द हमारे बहुत करीब था और हमसे अच्छी दोस्ती भी रखा करता था।

बचपन के खेल

आज की भागदौड़ की ज़िंदगी में वो बचपन के खेल कहीं गुम से हो गए हैं, आज सुबह के बाद वो सुकून वाली शाम नहीं आती बल्कि सीधा रात हो जाती है, शायद अब जो बच्चे हैं वो इन खेलों के सिर्फ नाम ही सुन पाएंगे। अगर हमने उन्हे खेलों की इन सुनहरी दुनिया से रूबरू नहीं करवाया तो वो कभी ये खूबसूरत यादें नहीं सहेज पाएंगे।