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रामायण काल के ये किरदार इन्सानी प्रजाति के नहीं थे!

भगवान् राम ने लक्ष्मण और अपनी पूरी सेना के साथ मिलकर लंका के रावण से युद्ध किया था और अपनी पत्नी सीता को मुक्त कराया था.

लेकिन रामयण काल की इस पूरी घटना में इंसानों के अलावा कई ऐसी प्रजातियाँ भी सम्मिलित थी, जो इंसानी प्रजाति से बिलकुल भिन्न थी जो इन्साओं के साथ मिल कर रहती थी और उनसे बातचीत भी करती थी.

वैज्ञानिकों के अनुसार इंसानों की तरह जानवार भी वार्तालाप करते हैं. बस आज के समय में फर्क यह आ गया हैं कि इन जानवरों की भाषा समझने वाला अब कोई नहीं हैं. वही पौराणिक काल में इन प्रजातियों की भाषा समझी जाती सकती थी तभी रामायण का वह युद्ध संभव हो पाया था.

रामायण काल से जुड़े ये किरदार  जो इन्सानी प्रजाति के नहीं थे-

1.  वानर जाति-

जब भी इस प्रजाति की बात होती हैं तो हमारे ज़ेहन में सबसे पहले हनुमान जी का विचार आता हैं जो सही भी हैं क्योकि हनुमान जी अंजनी और पवन के पुत्र थे और अंजनी वानर प्रजाति से आती थी. वानर शब्द का अगर संधि विच्छेद करे तो वन+नर जिसका मतलब होता हैं वन में रहना वाला नर. हनुमान के अलावा बाली, सुग्रीव, अंगद जैसे और वानर भी राम की वानर सेना में शामिल थे. वानर की इन प्रजातियों को आज हम चिम्पांजी, गोरिल्ला आदि के रूप में भी जानते हैं.

 

2.  रीझ या भालू-

रामायण काल में रीझ प्रजाति से सम्बन्ध रखने वाले जामवंत थे. कहा जाता हैं कि रीझ प्रजाति बहुत ही बुद्धिमान होती हैं. रामायण काल में भी भगवान राम की सेना के लिए समुद्र के किनारें मचान निर्माण और पदार्थ ज्ञान जैसी तकनीक में महारत हासिल थी. जामवंत ने रामायण में रावण द्वारा प्रहार किये गए विषैले हथियारों से राम सेना की रक्षा की थी और हनुमान को लक्ष्मण के मुर्चित होने पर संजीवनी के बारे में ज्ञान भी दिया था.

3.  गिद्ध या गरुड़-

पक्षियों में सबसे कुशाग्र बुद्धि वाली यह प्रजाति रामायण काल में गरुड़ के नाम से जानी जाती थी. कहते हैं कि भगवान् विष्णु की सवारी गरुड़ ही थे. भगवान् राम के साथ युद्ध में सम्पाती और गरुड़ नाम के इन दो गरुड़ ने राम का युद्ध में बहुत सहयोग किया था और भगवान् राम के लिए लड़ते हुए मृत्यु प्राप्त करने वाले सबसे पहले योद्धा गरुड़ ही थे.

4.  गिलहरी-

कहते हैं कि भगवान् राम जब अपने वनवास में थे तब एक बार रास्तें में चलते हुए एक गिलहरी उनके पैरों के नीचे आ गयी थी. भगवान् राम को जैसे ही यह ज्ञात हुआ उन्होंने ने तुरंत उस गिलहरी को हाथ में लेकर क्षमा मांगी और प्यार से गिलहरी के छोटे शरीर पर अपनी तीन उंगलियाँ फेरी. मान्यता  हैं कि गिलहरी के पीठ पर दिखने वाली तीन धारियों भगवान् राम की उँगलियों से बनी थी.

5.  कौआ-

मान्यता हैं कि काकभाशुनडी को एक ऋषि के श्राप के चलते अपना पूरा जीवन एक काग के रूप में व्यतीत करना पड़ा था. वाल्मीकि से पहले रामायण की समस्त जानकारी काकभाशुनडी को ही थी जिसे हनुमान ने जानकर सम्पूर्ण रामायण वाल्मीकि से पहले लिख कर समुद्र में फेक दी थी.

सभी मान्यताओं के अलावा उस काल की यह बात अच्छी थी इंसान और जानवर सभी एक साथ मिल कर रहते थे.

Sagar Shri Gupta

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