बॉलीवुड

बॉलीवुड की ये अभिनेत्री कभी सोचती थी – कहीं मेरे पापा मेरी सहेलियों के साथ कुछ गलत न कर दें !

अदाकारा श्रध्दा कपूर – बचपन से बच्चे अपने माता-पिता को जिस रूप में देखते हैं वो उनके लिए वैसी ही धारणा बना लेते हैं.

अगर किसी के पापा नाटक में हीरो बन रहे हैं, तो वो बच्चे उन्हें हर पल हीरो की तरह देखते हैं. इसके विपरीत अगर किसी के पापा फिल्मों में गलत किरदार निभाते हैं तो बच्चों की मानसिकता उनके प्रति बदल जाती है.

साइकोलोजिस्ट भी मानते हैं कि एक बार बचपन में बच्चों के मन पर जो छाप पड़ गई, उसे मिटाना बहुत मुश्किल होता है. इसका उदाहरण हम सभी को मिला बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस से. आजकल फिल्मों में धूम मचाने वाली सबकी फेवरेट और मैं फिर भी तुमको चाहूँगा के टाइटल से सजी यंग अदाकारा श्रध्दा कपूर से.

अदाकारा श्रध्दा कपूर के पिता शक्ति कपूर फिल्मों में विलेन का रोल निभाते थे.

फिल्मों में वो विलेन का किरदार निभाते हुए लोगों से मार पीट, लड़कियों से छेड़छाड़ आदि करते नज़र आते. ये उनका काम था. फिल्मों में विलेन के किरदार के लिए वो फिट थे और उसी से उनके घर की रोज़ी रोटी चलती थी. हर फिल्म में शक्ति के किरदार को कुछ इस तरह दिखाया जाता था कि उनसे नफरत हो जाती थी, यही शक्ति के लिए तारीफ होती थी. अगर एक्टर अपने रोल में पूरी तरह से जैम गया और लोग उसकी तारीफ कर दें तो समझ जाइए कि आप हिट हो गए. जिस तरह से हीरो को लोग चाहते हैं और उसकी अच्छाई की तारीफ करते हैं अगर उसी तरह से फिल्म देखने के बाद लोग विलेन को खरी खोटी सुनाएं तो समझ जाइए की उस एक्टर ने बहुत बढ़िया काम किया.

खैर शक्ति के करियर के लिए ये ठीक था, लेकिन उनकी छोटी सी बेटी पर इसका गलत असर पड़ा.

जब श्रध्दा बड़ी हुईं तो वो अपनी सहेलियों को घर पर लाना नहीं चाहती थीं. उस समय उनकी माँ कहती की बार बार तू ही सबके घर जाती है और कोई क्यों नहीं आता, तब श्रध्दा इस बात का जवाब नहीं देतीं.

फिल्मों में आने के बाद किसी इंटरव्यू में अदाकारा श्रध्दा कपूर ने कहा उस बात का ज़िक्र किया. जब उनसे पूछा गया कि आपके पिता इस तरह के रोल करते हैं तो आपको कैसा लगता है? इस पर श्रध्दा ने कहा था कि बहुत बुरा. पहले तो उन्हें इसकी समझ नहीं थी, इसलिए वो अपने पिता को फिल्मों वाला चरित्र मानती थीं और उन्हें डर लगता था कि कहीं उनकी सहेलियां जब घर आएं तो उनके पापा उनके साथ भी फिल्मों की तरह कुछ गलत न कर दें. ये डर श्रध्दा के मन में था और दिमाग में.

इसीलिए कहते हैं कि बचपन से ही अपने बच्चों के सामने वही प्रेजेंट कीजिए जो उनके लिए बेहतर हो.

Shweta Singh

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Shweta Singh

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