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जानिए पितृपक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध?

पितृपक्ष

हिंदू धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है, कहते हैं इससे पितरों की आत्मा का शांति मिलती है. श्राद्ध हर साल पितृपक्ष में किया जाता है. श्राद्ध को महालय के नाम से भी जाना जाता है. इस साल 24 सितंबर से 8 अक्टूबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा. चलिए बताते हैं कि आखिर हिंदू धर्म में श्राद्ध को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना गया है.

श्राद्ध का मतलब होता है श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों की पूजा करना. हिंदू शास्त्रों के मुताबिक, पितरों की तृप्ति और उन्नति के लिए पितृपक्ष में शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में पितरों को मुक्त करते हैं ताकि वो अपने बच्चों द्वारा किए जाने वाले तर्पण ग्रहण कर सकें.

हिंदू शास्त्रों में किसी के परिजन चाहे वह शादीशुदा हो या कुंवारा, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष जिनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है. कहा जाता है कि पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर धरती पर अपने घर-परिवार के लोगों को आशीर्वाद देने आते हैं. इसलिए पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है.

हिंदू धर्म में पितृपक्ष के 15 दिन पितरों को समर्पित होते हैं. शास्त्रों मे कहा गया है साल के किसी भी पक्ष में, जिस तिथि को परिजन की मृत्यु होती है उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिये, लेकिन पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. जिस तिथि पर परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं. बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है. इसके अलावा यदि किसी की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की परंपरा है.

हिंदू धर्म में बेटे को अपने माता-पिता के श्राद्ध का हक दिया गया है, लेकिन यदि बेटे की भी मृत्यु हो चुकी है तो पोता या उसका बेटा भी श्राद्ध कर सकता है. बिहार के गया जिले में पितृपक्ष के समय पिंडदान के लिए लोगों की भारी भीड़ जुटती है. कहते हैं यहां पिंडदान यानी श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.