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जानिए श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन क्यों कराया जाता है ?

श्राद्ध कर्म विधि

श्राद्ध कर्म विधि – हिन्दू धर्म में  पितरों की आत्मिक शांति के लिए श्राद करने का रिवाज है.

जब यह श्राद कार्य पूरे विधि से किया जाता है, तभी पितृ की आत्मा शांत होती है. श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन परोसा जाता है.

श्राद्ध कर्म विधि अनुसार कौवे को थाली में भोजन परोसा जाता है लेकिन यह भोजन किस उद्देश्य से परोसा जाता है, यह बात बहुत कम लोग जानते है.

आइये जानते है श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन क्यों परोसते है.

पुराणों व ग्रंथो में कौवे को एक विशेष पक्षी के रूप में बताया  गया है.

प्राचीन ग्रंथो और महाकाव्यों में इस कौवे से जुड़ी कई रोचक कथाएँ और मान्यताएं भी लिखी हुई है. पुराणों में भी कौवों का बहुत महत्व बताया गया है. पुराणों के अनुसार कौवों की मौत कभी बिमारी से या  वृद्ध होकर नहीं होती है. कौवे की मौत हमेशा आकस्मिक ही होती है और जब एक कौआ  मरता है, तो उस दिन उस कौवे के  साथी खाना नहीं खाते है.

कौवे की खासियत है कि वह कभी भी अकेले भोजन नहीं करते है. वह हमेशा अपने साथी के संग मिल बांटकर ही  भोजन करता है.

इस पक्षी का श्राद्ध कर्म विधि में भी विशेष महत्व होता है. श्राद्ध में घर में बने सारे भोजन और पकवान निकाल कर एक थाली में रखकर इस कौवे को परोसे जाते है.

मान्यतानुसार यह पक्षी यमराज  का दूत होता  है, जो श्राद्ध में आकर अन्न की थाली देखकर यम लोक जाकर हमारे पितृ को श्राद में परोसे गए भोजन की मात्रा और  खाने की वस्तु को देखकर हमारे जीवन की आर्थिक स्थिति और सम्पन्नता को बतलाता है.

जिसको जानकार पितृ को संतुष्टि होती है और उनकी आत्मा को शान्ति मिलती है.

अपने वंशज के खानपान देखकर पितृ को वर्तमान पीढ़ी के सुखी जीवन का आभास होता है. जिसको सुनकर पितृ संतुष्ट और खुश होते है. इसलिए श्राद्ध कर्म विधि में कौवें भोजन दिया जाता है.