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ऐसा क्या है गुप्तधाम में जहाँ आज भी भगवान् आते हैं!

Guptdham Chhattisgarh

यह एक ऐसी जगह है जहाँ से कई ऐतिहासिक किस्से जुड़े हुए हैं. कई मान्यताएं और मिथक सुनने को मिलते है.

क्या आप भी जानना चाहते हैं क्या है इस गुप्त धाम की कहानी?

क्यों पड़ा उस जगह का नाम गुप्त धाम?

वैसे तो भारत में मुख्य रूप से चार धाम प्रचलित है – उत्तर में बद्री नाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी, और पश्चिम में द्वारिका.

एक धाम मध्य में भी स्थित है जिसका नाम है गुप्त धाम.

गुप्त धाम मध्य भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर चाम्पा जिले के समीप स्थित शिवरीनारायण को कहा जाता है. शिवरीनारायण को गुप्तधाम का स्थान प्राप्त है इसका वर्णन रामावतार चरित्र और याज्ञवल्क्य संहिता में मिलता है.

अब आप सोच रहे होंगे की शिवरीनारायण को गुप्तधाम क्यों कहा जाता है?

गुप्त धाम के बारे में जानने से पहले हम आपको शिवरीनारायण के बारे में बताएँगे कि इस जगह को शिवरीनारायण क्यों कहा गया और इस जगह में क्या खास बात है.

एक श्रमणा नाम की औरत जो भील समुदाय में शबर जाति से थी. उसके पिता भीलों के राजा थे. जब श्रमणा विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता ने उसका विवाह एक भील राजकुमार से तय किया. श्रमणा के विवाह से पहले सैकड़ों भैस बकरी बलि के लिए लाये गए जिसको देखकर श्रमणा को मन ही मन बहुत बुरा लगा. श्रमणा ने सोचा ये कैसा विवाह है जिसमें सैकड़ों निर्दोश जीवों की हत्या कर जशन मनाया जाएगा. यह सोच कर श्रमणा विवाह के पहले दिन ही घर से भाग गई और भाग कर दण्डकारण्य जा पहुँची.

दण्डकारण्य में अनेक ऋषि तपस्या करते थे.

उनको देख कर श्रमणा उनकी सेवा करना चाहती थी. लेकिन उस समय भील जाति को नीची जाति समझा जाता था. इसलिए श्रमणा जानती थी की ऋषि उसको सेवा नहीं करने देंगे. इसलिए श्रमणा ऋषि के जागने से पहले नदी जाने वाले रास्तों के काँटों को हटाकर कर साफ कर देती और रेत बिछा देती थी. ये सब श्रमणा ऋषियों से छुप कर करती थी.

एक दिन अचानक मतंग ऋषि की नज़र श्रमणा पर पड़ गई और उसकी निस्वार्थ सेवा से खुश होकर मतंग ऋषि ने श्रमणा को आश्रम में रहने को जगह दे दी. श्रमणा के शबर जाति के होने के कारण उसको मतंग मुनि शबरी नाम से बुलाने लगे. श्रमणा में आश्रम में रखे जाने पर बाकी ऋषि ने मतंग ऋषि से विरोध करने लगे लेकिन मतंग ऋषि ने शबरी को आश्रम से नहीं निकाला और अपने जीवन के अंतिम समय में मतंग मुनि ने शबरी को कहा की वह आश्रम में रहकर ही भगवान् राम की प्रतीक्षा करे. भगवान् राम शबरी से मिलने जरुर आयेंगे. अपने गुरु की बात मानकर शबरी आश्रम में ही भगवान् राम के आने की प्रतीक्षा करने लगी.

शबरी भगवन राम के लिए भेट में देने के लिए रोज़ जंगल से बेर तोड़ कर लाती लेकिन शबरी सारे बेर तोडा कर पहले खुद जूठा करके ये देखती थी की बेर में कीड़े तो नहीं. बेर खट्टे तो नहीं. शबरी रोज़ भगवान की प्रतीक्षा में रोज़ जंगल से बेर तोडती और चख कर देखती.

ऋषियों को शबरी का व्यवहार पागलपन लगता लेकिन शबरी उनकी बातो को अनसुना कर अपनी गुरु की बात ध्यान में रखकर भगवान् का इंतिजार करती. इंतिजार करते करते शबरी बूढी हो गई.

अंत में वह दिन आ गया जब शबरी को पता चला की कोई दो सुकुमार कुंवर शबरी को खोज रहे हैं. राम लक्ष्मण दोनों जंगल में घूमते घूमते शबरी से मिलने आ पहुंचें और शबरी ने अपने भगवान् का सत्कार करते हुए उनके पैर धोकर बैठाया और अपने जूठे बेर भगवान् को प्रेम से खिलाया.

भगवान् राम ने शबरी के जूठे बेर ख़ुशी ख़ुशी खा लिया लेकिन लक्ष्मण को शबरी के जूठे बेर खाने में हिचक हो रही थी परन्तु भगवान् राम की बात रखने के लिए उन्होंने भी शबरी के जूठे बेर बेमन से एक खा लिया.

लक्ष्मण को अपने इस व्यवहार का परिणाम लंका युद्ध में भुगतना पड़ा.

लक्ष्मण को शक्ति बाण के कारण मूर्छित होने की वजह यही माना जाता है.

शबरी का राम ने अपने प्रति प्रेम को देख कर अपने आप को इस जगह में हमेशा के लिए स्थापित करने के लिए विश्वकर्मा के हाथो से यहाँ अपने लिए विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया जहाँ आज भी भगवान् मांघी पूर्णिमा में जगन्नाथ छोड़ कर आते हैं.

शबरी और नारायण के नाम को जोड़ कर इस जगह को शबरीनारायण नाम प्राचीन काल में ही रखा गया.

आज भी इस जगह एक ऐसा पेड़ है जिसके पत्ते कटोरीनुमा होता है इस वृक्ष का नाम कृष्णवट है. यह वृक्ष सिर्फ यही है बाकि किसी जगह नहीं मिलती.

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मान्यताओं के अनुसार इसी वृक्ष के पत्ते में शबरी ने भगवान् राम को बेर खिलाया था और तब से उसके पत्ते कटोरीनुमा होने लग गए.

यहाँ के नारायण मंदिर के किनारे तीन नदी का संगम होता है महानदी, शिवनाथ नदी और जोंक नदी साल में एक बार नदी का पानी नारायण भगवान् का पैर छूने एक पल के लिए मंदिर के अंदर आता है .

इस जगह पर मंदिर के अंदर भगवान् के पैर के एक ऐसी जगह है जिसमे सिक्का डालने पर उसकी खनक 15 से 20 मिनट तक सुनाई देती थी परन्तु अभी उसे बंद कर दिया गया.

इस जगह को गुप्त धाम इसलिए कहा गया क्योंकि भगवान् विष्णु आज भी यहाँ बेर खाने आते हैं.

आज भी शिवरीनारायण में भव्य मेला लगता हाँ अनेको पर्यटक घुमने आते हैं शिवरीनारायण से जुड़ी और भी छोटी छोटी रोमांचक बाते जानना है तो एक बार शिवरीनारायण जरुर जाएँ जहा आज भी भगवान् आते हैं.