ENG | HINDI

शिव के ऐसे मंदिर जो ना देखे ना सुने – पंच तत्व रूप में पूजे जाते है शंकर

panch-tattva

सृष्टि और जीव जंतु सभी का निर्माण पंच तत्व से हुआ है.

धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश को सनातन सभ्यता में पञ्च तत्व कहा गया. दुनिया की अन्य सभ्यताओं के अनुसार भी सृष्टि का निर्माण इन तत्वों या पंच महाभूतो से हुआ है.

कहा जाता है कि ये पंचभूत शिव का ही भाग होते है. प्राचीनकाल में शिव की पूजा शरीर रूप में नहीं इन पंच तत्वों के रूप में ही की जाती थी.

दुनिया की अन्य सभ्यताएं भी यही मानती है की सृष्टि का निर्माण इन्हीं पांच तत्वों से होता है.

आज हम आपको बताएँगे हमारे देश में स्थित भगवान शिवे के वो अति प्राचीन मंदिर जहाँ पर शिव की पूजा पंच महाभूतों के रूप में होती है.

जल रूप

 भारत के दक्षिणी भाग में त्रिची में जम्बुकेश्वर महादेव नामक शिव मंदिर है. इस मंदिर में शिवे के जल स्वरुप की पूजा की जाती है. एक जामुन के पेड़ के नीचे  स्थित शिव का अभिषेक वर्षा  के दिनों में वहां बहने वाली एक छोटी सी नदी करती है.

jambukeshwara-temple

अग्नि रूप 

अरुनाचालेश्वरा मंदिर में शिव की अग्नि रूप में पूजा की जाती है. यहाँ के शिव लिगोद्भव है. कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहाँ शिव, विष्णु और ब्रह्मा से पहले लिंग रूप में प्रकट हुए थे.

arunachaleswarar_temple

वायु रूप

आँध्रप्रदेश में श्री कालहस्ती मंदिर में शिव की वायु सवरूप में पूजा की जाती है. इस मंदिर में शिवलिंग के पास एक ज्वाला लगातार जलती रहती है और हिलती रहती है, जबकि इसके आसपास कहीं भी कोई हवा नहीं बहती. कहा जाता है कि ज्वाला का हिलना शिव के वायु स्वरुप के कारण होता है.

kaalhasti-temple

धरती रूप

कांचीपुरम में स्थिति एकाम्बरेश्वर मंदिर के शिव धरती स्वरुप का प्रतिनिधित्व करते है. इस मंदिर का शिवलिंग मिट्टी से बना हुआ है. मन जाता है कि एकाम्बरेश्वर मंदिर के शिवलिंग का निर्माण माता पारवती ने किया था.

ekambareshwar-temple

आकाश रूप

चिदंबरम में स्थित नटराज मंदिर हमारे देश के सबसे प्रसिद्द शिव मंदिरों में से एक है. इस मंदिर में शिव के तीन स्वरुप मिलते है. एक नटराज स्वरुप जो कला का प्रतिनिधित्व करता है है, दूसरा स्फटिक लिंग रूप और तीसरा  आकाश स्वरुप.

natraj-temple

दक्षिण भारत के शिव के ये पंचमहाभूत मंदिर बहुत प्रसिद्द है. इन प्राचीन मंदिरों से पता चलता है कि सनातन धर्म में देव पूजा का चलन तो बहुत बाद में हुआ पहले तो प्रकृति और इन पंच तत्व को ही पूजा जाता था. इसका कारण ये था कि सृष्टि का निर्माण और संहार इन्ही पंच तत्व से होता है.