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महादेव के इस स्वरुप के दर्शन करने से नहीं लगता भूत-प्रेत से डर !

कालभैरव

कालभैरव – भगवान शिव अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए भक्त उन्हें प्यार से भोलेनाथ कहकर पुकारते हैं.

भगवान शिव को स्मशान निवासी भी कहा जाता है और उनके गणों में भूत-प्रेत भी शामिल हैं.

भगवान शिव का हर रुप अपने भक्तों के कल्याण के लिए जाना जाता है. इनकी भक्ति से लोगों को ना तो अकाल मौत की चिंता सताती है और ना ही जीवन में किसी प्रकार का कोई डर रहता है.

आज हम आपको भगवान शिव के ऐसे स्वरुप के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके दर्शन करने से भक्तों को भूत-प्रेतों से कभी डर नहीं लगता.

भगवान शिव के पांचवे अवतार हैं कालभैरव

स्मशान में विराजने वाले कालभैरव को साक्षात शिव की क्रोधाग्नि माना जाता है. कहा जाता है कि भोलेनाथ के पांचवे अवतार कालभैरव के स्मरण मात्र से ही व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.

कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोने तथा भूत-प्रेत जैसी किसी भी चीज का डर नहीं सताता है.

कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए उड़द की दाल या इससे बने मिष्ठान और दूध-मेवा का भोग लगाया जाता है. फूलों में चमेली का फूल उन्हें अति प्रिय है.

कालभैरव अवतार से जुड़ी पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्माजी से प्रश्न किया कि इस चराचर जगत में अविनाशी तत्व कौन है. इसपर ब्रह्माजी ने कहा कि मैनें ही इस सृष्टि का सृजन किया है इसलिए मैं ही अविनाशी तत्व हूं.

जब देवताओं ने यही प्रश्न विष्णु भगवान से किया तो उन्होंने कहा कि इस चराचर जगत का भरण-पोषण करता हूं इसलिए अविनाशी तत्व मैं ही हूं.

इस बात की सत्यता को परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया. चारों वेदों ने एक ही स्वर में कहा कि जिनका कोई आदि-अंत नहीं है वे अविनाशी तो केवल भगवान रुद्र हैं.

चारों वेदों द्वारा शिव के लिए इस तरह की वाणी सुनकर ब्रह्माजी के पांचवे मुख ने शिव के बारे में अपमानजनक शब्द कहे और इसी समय एक दिव्यज्योति के रुप में भगवान रुद्र यानी शिवजी प्रकट हुए.

ब्रह्माजी के इस आचरण पर भगवान शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया. फिर उस दिव्यशक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहनेवाले ब्रह्माजी के पांचवे सिर को ही काट दिया.

ब्रह्माजी की पांचवे सिर को काटने की वजह से उनपर ब्रह्महत्या का पाप लगा. जिसके बाद शिवजी के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया जहां उन्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली और फिर भगवान शिव ने अपने इस पांचवे अवतार को काशी का कोतवाल बना दिया.

गौरतलब है कि कालभैरव का स्वरुप देखने में भले ही भयानक प्रतीत होता है लेकिन वे अपनी शरण में आए भक्तों को कभी निराश नहीं करते हैं. भैरव को भूतों का राजा कहा जाता है इसलिए इनके दर्शन करनेवाले भक्तों को कभी भूत-प्रेत का डर नहीं सताता है.