ENG | HINDI

एक ऐसा योद्धा जो अपने राज्य की रक्षा के लिए लाखों से लड़ बैठा और बाद में अकबर ने इसी का सारा राज्य अपने नाम कर लिया

shershah suri

शेरशाह सूरी का असली नाम फरीद था.

वह 1486 ईस्वी में पैदा हुआ था. उसके पिता एक अफगान अमीर जमाल खान की सेवा में थे.

जब वह युवावस्था में था तब वह एक अमीर बहार खान लोहानी के सेवा में रहा था. बहार खान के अधीन ही जब वह काम कर रहा था तभी उसने अपने हाथो से एक शेर की हत्या की थी जिसकी वजह से बहार खान लोहानी ने उसे शेर खान की उपाधि दी थी.

जब शेरशाह का अपमान कर दरबार से निकाल दिया गया था

बहार खान लोहानी के शासन के अन्य अमीरों के जलन के कारण शेरशाह को दरबार से बाहर निकाल दिया गया था. इस योद्धा ने संघर्षों से हार नहीं मानी और जब वह बाबर की सेवा कर रहा था तो उसने मुगलों शासको और उनकी सेनाओ की बहुत सारी ताकतों और कमियों का गहराई से मूल्यांकन कर लिया था.

जल्दी ही उसने मुगलों के खेमे को छोड़ दिया और बहार खान लोहानी प्रधानमंत्री बन गया. बहार खान लोहानी की मृत्यु के बाद वह बहार खान लोहानी के समस्त क्षेत्र का इकलौता मालिक बन गया.

शेरशाह सूरी के इस इतिहास को तो सभी जानते हैं लेकिन इस योद्धा की कुछ ऐसी बातें भी रही हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं. कुछ लेखक लिखते हैं कि अगर शेरशाह नहीं होता तो यह विश्व कभी अकबर का भी नाम नहीं सुन पाता. अकबर ने अपनी सल्तनत को इसी महान योद्धा की नींव के ऊपर बनाया है. तो असल शब्दों में नींव शेरशाह ने रखी और ऊपरी मंजिल अकबर ने बनाई थी.

जब दिल्ली के सिंहासन पर बाबर का पुत्र हुमायु बैठा था तब उसे शेरशाह की बढ़ती शक्ति की आशंका हुई थी. इन दोनों के बीच अनेक युद्ध हुए और अंतिमयुद्ध में हुमायू हारकर भाग गया था.

कहते हैं कि शेरशाह ने धर्म और जात के भेद को भूलते हुए सिर्फ और सिर्फ जनता के विकास का कार्य किया था.

वह बहरत में जन्मा था और देश को अपनी मातृभूमि मानता था.

शेरशाह के बारे में इतिहास ने काफी अच्छा वर्णन किया हुआ है.

जब एक बार गरीब न्याय के लिए आया

एक कहानी शेरशाह के बारें में बताई जाती है कि एक बार सरदार ने एक गरीब की नहाती हुई स्त्री पर पान का बीड़ा फ़ेंक दिया. वह सरदार उच्च जाति का था इसलिए कोई भी उसके खिलाफ फैसला नहीं दे सकता था. तब वह गरीब न्याय के लिए शेरशाह के सामने गया. शेरशाह ने कठोर निर्णय लेते हुए गरीब को बोला कि आप भी सरदार की नहाती स्त्री का बीड़ा फ़ेंक दो.

इस फैसले से बेशक राजा का दरबार खुश नहीं था लेकिन एक गरीब के लिए यह एक बड़ा न्याय ही था.

शेरशाह के राज में जनता का विकास खूब हुआ था. राजा की आज्ञा थी कि राज्य में कोई भी भूखा नहीं सोये इसकी व्यवस्था की जाये.

विन्ध्य प्रदेश पर आक्रमण करते हुए, बारूद के ढेर में आग लगने से शेरशाह की मौत हो गयी थी और एक महान योद्धा का अंत काफी निराशाजनक माना जा सकता है. किन्तु कहते हैं कि अगर शेरशाह बचता तो अकबर इसके सामने खड़ा नहीं हो सकता था.

कई इतिहासकारों के अनुसार अकबर ने शेरशाह के ही राज्य पर अपना झंडा बुलंद किया था.