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बहुराष्ट्रीय कम्पनी की मलाईदार नौकरी छोड़कर पुलिस कांस्टेबल बने शेरदिल रूपेश पंवार की कहानी!

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आप क्या बनना चाहते है? डॉक्टर,इंजिनियर या फिर कांस्टेबल?

अगर कोई ऐसा सवाल पूछे तो आपको भी लगेगा की मजाक किया जा रहा है. हर कोई आज के समय में डॉक्टर या इंजिनियर ही तो बनना चाहता है.

लेकिन आज जो कहानी हम दिखाने जा रहे है उसमें एकदम उल्टी बात हुई है. इस अविश्वनीय लेकिन सच्ची कहानी में एक व्यक्ति ने बहुराष्ट्रीय कम्पनी की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर पुलिस विभाग में कांस्टेबल बनना पसंद किया.

ये कहानी है मुंबई में रहने वाले रूपेश पंवार की. रूपेश मुंबई विश्वविद्यालय से स्नातक है. उनकी अंग्रेजी सुनकर बड़े बड़े दांतों टेल उँगलियाँ दबा लेते है. लेकिन रूपस अब बहुराष्ट्रीय कम्पनी में काम नहीं करते वो तो सिर्फ एक साधारण कांस्टेबल है.

कांस्टेबल बनने से पहले रूपेश ने पहले दो साल RYDER सॉफ्टवेर और फिर उसके बाद एक साल तक ING Vyshya में नौकरी की.

रूपेश बताते है कि इस दौरान उनके पिता को किडनी की बीमारी हो गयी थी और उन्होंने रूपेश से पुछा कि क्या वो [पुलिस की नौकरी करेंगे ?

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अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए रूपेश ने कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़कर मुंबई पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी की.

सनद रहे कि रूपेश के भाई और उनकी बहन दोनों पुलिस में है और रूपेश के परिवार की परम्परा रही है पुलिस की नौकरी करना.

रूपेश बताते है कि पहले की नौकरी में उन्हें धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन अब इस नौकरी से वो इतना ही कम पाते है कि उनका घर खर्च चल जाता है.

रूपेश ने बताया कि जब उन्होंने अपनी होने वाली पत्नी को बताया कि वो एक साधारण कांस्टेबल है तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ. रूपेश की अंग्रेजी, बातचीत करने का लहजा कुछ भी पुलिसवाले जैसा नहीं था.

आज रूपेश शादीशुदा है और उनके दो बच्चे भी है. रूपेश की पहली प्राथमिकता इन दोनों बच्चों को अच्छी  शिक्षा दिलाना है.

Kitteyzenkane ने रूपेश की कहानी को एक लघुफिल्म का रूप दिया है जिसका निर्देशन सिद्दार्थ सत्यजित ने किया है.. इस फिल्म को जियो मामी फिल्म समारोह में भी दिखाया गया था.