ENG | HINDI

डीयू विवाद की कमान थामने के पीछे ये है संघ की रणनीति

डीयू विवाद

दिल्ली विश्वविद्यालय में कश्मीर और बस्तर की आजादी को लेकर जो नारे लगे थे उसको लेकर बताया जाता है कि इसके पीछे वामपंथियों की बहुत सोची समझी रणनीति थी.

डीयू विवाद को बहुत चालाकी और दिमाग के साथ तैयार किया गया था.

यही वजह है कि शुरूआत में इस डीयू विवाद के पूरे मामले में वामंपथी संगठन को बढ़त मिली और सारा मामला अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के खिलाफ जाता नजर आया.

वांमपथी संगठन और मोदी के विरोधी जैसा चाहते थे ठीक वैसा ही हुआ. मीडिया में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को खलनायक बनाकर पेश किया गया.

उसके बाद सोशल मीडिया पर सेना के शहीद की बेटी का वीडियों डालकर मोदी समर्थकों को कठघरे में खड़ा कर निशाना बनाया जाने लगा.

एक के बाद एक हमलों से बैकफुट पर जा रही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को लेकर संघ के बड़े पदाधिरकारियों को समझ में आया कि इस पूरे मामले सेे निपटना अकेले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बूते की बात नहीं है.

क्योंकि इसमें वामंपथियों के छात्र संगठनों के अलावा उनके एकेडेमिक ऐसोशिएसन से जुड़े प्रोफेसर भी लगे थे. साथ ही मीडिया में जमा वामपंथियों की जमात वहां से इस मूवमेंट में मोदी समर्थकों के खिलाफ माहौल बनाने में लगी थी.

संघ को समझ में आ गया कि ये डीयू विवाद मामला दो छात्र संगठनों के बीच विश्वविद्यालय में वर्चस्व या विरोध का नहीं हैं बल्कि यहां सामने वाला विचारधारा के स्तर पर लड़ाई लड़ रहा है.

लिहाजा इस पूरे डीयू विवाद मूवमेंट की कमान संघ ने कुछ वरिष्ठ लोगों को थमा दी.

इसका असर भी देखने को मिला. संघ के हाथों में कमान आते ही एक दम से बाजी पलट गई.

दिल्ली विश्वविद्यालय में जगह जगह पर केरल में वामपंथियों की गुंडागर्दी के सबूत दीवारों पर चिपका दिए गए. वामपंथी क्रूरता के शिकार हुए लोगों की वीभत्स तस्वीरें जब विश्वविद्यालय में जगह जगह चिपकाई जाने लगी तो जो वामपंथी संगठन अहिंसा को हथियार बनाकर हमलावर थे बैकफुट पर आ गए.

उनको लगने लगा है कि अब यहां दाल नहीं गलने वाली है. इसीलिए उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से धीरे धीरे अपना आंदोलन समेटना शुरू कर दिया हैं. उन्होंने एक बार फिर अपने पुराने कम्फर्ट जोन यानी जेएनयू की शरण ली है.

जेएनयू की दीवारों पर कश्मीर की आजादी के नारे वाले पोस्टर लगाकर आंदोलन को डीयू से वापस जेएनयू में पहुंचाने की तैयारी हो चुकी है.

वहीं संघ ने भी इसको लेकर अपनी मोर्चेबंदी तेज कर दी है.

अगर वामपंथी नहीं माने तो आने वाले दिनों में ये आंदोलन और तेज होगा. यूपी चुनाव परिणाम आने के बाद ही वामपंथी विचारधारा की शह पर चलने वाले आंदोलन के खिलाफ नई रणनीति बनाकर उससे निपटा जाएगा.

Article Categories:
राजनीति