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कहाँ से आते हैं ढाई करोड़ आग लगाने के लिए?

आज मल्होत्रा साहब से मिलना हो गया, थोड़े ख़ुश थे, थोड़े उदास|

अरे पहले बता दूँ कि वो हैं कौन|

एक जानकार हैं और सुना है रुपयों के बिस्तर पर ही उनको नींद आती है, डॉक्टरी सलाह है भाई, और हीरे-मोतियों से जड़े संडास पर बैठते हैं तभी उस चमक-दमक से उनकी नींद खुलती है, वरना हज़ार बाजे बजा लो, मजाल है उठ जाएँ!

खैर वो ख़ुश इसलिए थे कि दो दिन पहले ही उन्होंने फ़रारी खरीदी है, सिर्फ़ 3.5 करोड़ की!

नहीं, पहली कार नहीं है, 15-20 गाड़ियाँ हैं उनके पास, फ़रारी पहली है|

चेहरा दमक रहा था लेकिन उदास थे कि प्याज़ की कीमतें कहाँ चढ़ी जा रही हैं! मैंने कहा आपको क्या फ़र्क पड़ता है तो बोले नहीं जी, फ़रारी में बैठ कर जब उनकी पत्नी सब्ज़ी लेने जाती हैं तो दुकानदार 20 रुपये और महँगी देता है| फिर मैडम जी चिक-चक करती हैं तो दाम कम करता है लेकिन मैडम का कितना ख़ून जल जाता है तब तक! बेचारी के लिए सब्ज़ी लेना तक एक जोखिम भरा काम हो गया है! सच, मैं समझ सकता हूँ उनके दिल की हालत, आप भी समझ रहे हैं ना?

और इतने में उन्हें खबर मिली कि उन्हीं की बिरादरी के एक और रईस आदमी की 2.5 करोड़ की लम्बोर्गिनी में कल दिल्ली में आग लग गयी! सुनते ही झटका लग गया मल्होत्रा साहब को! बोले, बताओ, 5-5, 10-10 रुपये सब्ज़ी वालों से लड़ झगड़ कर कम करवाते हैं, काम वाली बाईयों को कम पैसे देकर गधे जैसा काम करवाते हैं, बैंक से हज़ारों-करोड़ों के लोन पास करवाते हैं और फिर अदा नहीं करने पर किताबों से उसे साफ़ करवाते हैं, सरकार को बहला-फुसला के अपनी मर्ज़ी के कानून बनवाते हैं, दुनिया भर में घूम-घूम के बेहतरीन साज-सामन लेकर आते हैं, महँगी पार्टियाँ करते हैं और बचे हुए खाने को कूड़ेदान में फेंकते हैं, दिन भर मदद माँगने वालों का तांता लगता है, उन्हें धक्के देकर भगाते हैं, पैसे बचाते हैं, फिर कहीं आती है फ़रारी और लेम्बोर्गिनी जैसी गाड़ियाँ! और एक दिन में यूँही आग लग जाती है| अब भागो इनश्योरेन्स करवाने, फिर नयी कार खरीदने, फिर उसका इंतज़ार करना और फिर कहीं जाके जब नयी कार आती है तो दिल को सुकून मिलता है! सच में, कितनी मुश्किल है हमारे देश में एक आम आदमी की ज़िन्दगी, है ना?

मेरे बाक़ी के दोस्तों, जो इनके जितनी मुश्किल ज़िन्दगी नहीं जी रहे, कुछ तो शर्म करो यार!

पता नहीं कैसे रोने लेकर बैठे रहते हो! यह होती हैं मुश्किलें जिन्हें सरकार भी हल करने के लिए दिन-रात मदद कर रही है और एक तुम लोग हो, दो वक़्त की रोटी, कपडे और सर पर छत को लेकर ही जाने कितने सालों से छाती पीटे जा रहे हो! बस करो अब, बहुत हुआ!

मेरा दिल तो इनकी समस्याएँ सुनकर ही पिघल सा गया है, आँखों में आँसू से आ रहे हैं! अब और क्या लिखूँ, यही दुआ है कि इनकी जैसी तकलीफें सबको मिलें, कम से कम एक बार तो मिल ही जाएँ! साथ बैठ कर परेशान होंगे, इंसानियत के नाते इतना फ़र्ज़ तो बनता है ना कि इनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर रोया जाए!

चलो यार, अब और भावुक नहीं होते, थोड़ा काम करें, सब्ज़ीवाले से थोड़ी झिक-झिक करनी है ना, फ़रारी खरीदनी है यार 5 रूपए बचा कर! चलता हूँ!

Nitish Bakshi

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Nitish Bakshi

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