इतिहास

भारत की इस जगह से रावण लंका ले गया था पारस का पत्थर

पारस का पत्थर – भगवान राम को ललकारने वाले रावण को भला कौन नहीं जानता, हम सभी रामायण से भली भाती परिचित हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी बात बताएंगे जिसके बारे में आप ने कभी ना तो किसी रामायण की किताब में पढ़ा होगा और ना ही किसी फिल्म में देखा होगा. बता दे की रावन का संबंध भारत के राजस्थान तक से था.

जी हाँ अलवर शहर से करीब 3 किमी की दूरी पर स्थित एक गांव है जिसका काफी गहरा संबंध लंकापति रावण से जोड़ा जाता है.

राजस्थान के जैन शस्त्रों की माने तो यहाँ रावण भगवान शिव के स्वरूप पाशर्वनाथ की तपस्या करने आया था, और उसी तपस्या के फल के रूप में उसे पारस का पत्थर मिला. बता दे की पारस का पत्थर एक ऐसा तथ्य है जिसके संपर्क में यदि लोहा भी लाया जाए तो वो भी सोना बन जाता है.

राजस्थान के अलवर शहर से दूर स्थित इस गांव का नाम रावण देहरा बताया जाता है, और यहाँ आज भी प्राचीन जैन मंदिर के भग्नावशेष मिलते हैं. गांव के इतिहास की माने तो इस मंदिर का निर्माण खुद रावण ने ही करवाया था. रावण और उसकी पत्नी मंदोदरीदोनो ही भगवान पार्श्वनाथ की पूजा में लीन थे और उसी समय इंद्र देव प्रकट हो उठते हैं. इंद्र देव रावण और पत्नी मंदोदरी को पार्श्वनाथ भगवान की पूजा कर चमत्कारिक पारस पत्थर का वरदान लेने को कहते हैं.

इंद्र देव की बात सुन कर रावण ने अपनी पत्‍‌नी समेत भगवान पार्श्वनाथ की मन लगा के पूजा की और उनके प्रकट होने पर पारस का पत्थर का वरदान मांग उसे प्राप्त भी कर लिया. इस चमत्कारिक पत्थर की खास बात ये थी कि इसके संपर्क में आकर लोहा भी सोना बन जाता है. इस पत्थर की ही मदद से रावण ने लोहे को सोना बनाकर अपनी सोने की लंका यानी स्वर्ण नगरी का निर्माण किया. रावण देहरा गांव के जैन मंदिर की मूर्तियाँकों बीरबल मोहल्ले में स्थित जैन मंदिर में रखा गया है. इस मंदिर को रावण पार्श्वनाथ मंदिर कहा जाता है.

रावण देहरा ने यही पूजा कर अपने पुत्र इंद्रजीत को प्राप्त किया था. इंद्रजीत ने ही इंद्रप्रस्थ नगर बसाया जो आज की दिल्ली शहर है. रावण देहरा जैन मंदिरों के अवशेष अब तक मौजूद हैं. इन मंदिरों का रखराव सरकार द्वारा नहीं किया जाता जिस कारण यहाँ 52 जिनालयो के खंडहर और परिसर में बने अन्य मंदिर प्राचीन मंदिरों के खंडहर हैं. मंदिरों का ऊप्ररी भाग प्राचीन काल की विशेष वास्तुकला को दर्शाता है. रावण देहरा गांव अलवर शहर के प्रतापबंध से 2 किलोमीटर आगे स्थित है.

बता दे की पारस का पत्थर को चिंतामणी के नाम से भी जाना जाता है और इसका कई ग्रीक व अंग्रेजी किताबों में फिलोसेफर स्टोन के नाम से भी जिक्र है. हर जगह इस पत्थर के बारे में एक ही बात मशहूर है और वो ये की यह किसी के भी संपर्क में आते ही उसे सोना बना देता है फिर चाहे वो लोहा हो या पत्थर. चिंतामणी को ग्रीक्स के अनुसार आज तक केवल ऐड्म ही पा सका है और इसकी खोज में आज तक कई लोग अपनी जान तक गवा चुके हैं.

Namrata Shastri

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