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क्या है कहावत कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली के पीछे की सच्चाई ?

कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली

कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली – ये कहावत तो आपने बहुत बार सुनी होगी. अक्सर लोग इसे ताना मारने के लहजे में भी बोल देते हैं.

क्या कभी आपने इस कहावत की सच्चाई जानने की कोशिश की. क्या कभी आपने सोचा की राजा भोज की तुलना गंगू तेली से ही क्यों की जाती है? आखिर क्यों एक अमीर आदमी एक गरीब को ताना मारने के लिए इस कहावत का इस्तेमाल करता है.

कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली –

इसके पीछे की कहानी बहुत ही इंटरेस्टिंग है.

एक ऐसी कहानी जो बच्चे बच्चे जानते हैं. सबको लगता है कि इस तरह की कहानी के वो राजा भोज और सामने वाला गंगू तेली ही है. खुद को राजा बताने और सामने वाले को गंगू तेली बताने की आदत तो हमारे यहाँ पुरानी है.

वैसे भारत में हर बंदा खुद को राजा ही समझता है भले ही उसके पास खाने को रोटी न हो.

इस कहानी के पीछे के सच बहुत ही मजेदार है. ये कहानी मध्यप्रदेश के भोपाल से करीब ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर धार जिला ही राजा भोज की “धारानगरी” कहां जाता है. 11 वीं सदी में ये शहर मालवा की राजधानी रह चुका है और जिस राजा भोज ने इस नगरी को बसाया उस राजा की प्रशंसा करते आज तक बड़े बड़े विद्वान् ही नहीं राजा महाराजा और सामान्य जन भी करते आ रहे हैं.

उस राजा की विशेषता इतनी थी कि आज भी लोग उसे भूल नहीं पाए हैं.

सिर्फ इतना ही नहीं राजा भोज की चर्चा तो देश के बाहर भी थी. उस समय विदेशी लोग भी राजा भोज का राज्यकाल आकर देखा करते थे.

राजा भोज ने भोजशाला तो बनाई ही मगर वो आज भी जन जन में जाने जाते हैं एक कहावत के रूप में, कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली लेकिन इस कहावत में गंगू तेली नहीं अपितु “गांगेय तैलंग” हैं. गंगू अर्थात् गांगेय कलचुरि नरेश और तेली अर्थात् चालुका नरेश तैलय दोनों मिलकर भी राजा भोज को नहीं हरा पाए थे. ये दक्षिण के राजा थे और इन्होंने धार नगरी पर आक्रमण किया था मगर मुंह की खानी पड़ी तो धार के लोगों ने ही हंसी उड़ाई कि “कहां राजा भोज कहां गांगेय तैलंग”.

ये आगे चलकर टूट गया. लोग इसे साधारण शब्दों में बोलने लगे जो निकलकर आया कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली –

वैसे हम आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के राजा भोज बड़े ही दयालु किस्म के थे. उनके  प्रशंसकों की देश-विदेश में कमी नहीं है. बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजा भोज शस्त्रों के ही नहीं बल्कि शास्त्रों के भी ज्ञाता थे. उन्होंने वास्तुशास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद, योग, साहित्य और धर्म पर कई ग्रंथ और टीकाएँ लिखे, जो विद्वज्जनों से तिरोहित नही है. ऐसा कहा जाता है कि भोपाल का नाम भी उन्हीं के राज्य के नाम पर पड़ा.

इसके पीछे की कहानी ये है कि पहले इसका नाम भोजपाल था, लेकिन कुछ सालों के बाद बीच से ज गायब हो गया और इसे सीधे लोग भोपाल कहने लगें. कुछ इस तरह से भोपाल का नाम पड़ा.

कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली – राजा भोज की ये दिलचस्प कहानी आप सब को पसंद आई होगी. असल में हमारे यहाँ जितनी भी कहावतें हैं उनके पीछे का रहस्य बड़ा ही मजेदार होता है.