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दुनिया के सामने पहली बार ये शख्स लेकर आया था ‘पाकिस्तान’ शब्द का ज़िक्र

चौधरी रहमत अली

चौधरी रहमत अली – भारत की आज़ादी के सफ़र में कई ऐसी घटनाएं आई जो हमेशा के लिए मानवीय इतिहास पर अपनी छाप छोड़ गई.

इनमें कुछ यादें मिठास भरी हैं तो कुछ नीम सी कड़वी. इनमें अगर हम बात कड़वे अनुभव की करें तो सबसे दर्दनाक दौर था भारत और पाकिस्तान के बंटवारे का. हम में से अधिकांश लोग पाकिस्तान को मोहम्मद अली जिन्ना के दिमाग की उपज मानते हैं. मगर यह तथ्य पूरी तरह सच्चाई की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. पाकिस्तान की कल्पना और उसके नाम को अस्तित्व में लाने का काम कैम्ब्रिज में पढ़ने वाले एक मुस्लिम राष्ट्रवादी चौधरी रहमत अली ने किया था.

रहमत अली का सफ़रनामा-

इनका जन्म 16 नवम्बर 1895 को पंजाब भारत के होशियारपुर जिले के बलचौर शहर में हुआ था. रहमत गुर्जर मुसलमान थे, जो कि गोर्शी कबीले से ताल्लुक़ रखते थे. इस्लामिया मदरसा लाहौर से रहमत ने शुरुआती तालीम हासिल की. उसके बाद वो कुछ समय तक एचिसन कॉलेज लाहौर में विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे. जब इन सब में मन नहीं लगा तो पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करी.

1930 में रहमत इम्मानुएल कॉलेज, कैम्ब्रिज में पढ़ने इंग्लैंड चले गए. इंग्लैंड में रह कर 1933 में उन्होंने स्नातक और 1940 में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की. अपना जीवन पाकिस्तान के ऊपर अर्पण कर देने के बाद 3 फरवरी 1951 को पाकिस्तान के इस महान लेखक ने दुनिया को अलविदा कहा.

पाकिस्तान और पाकिस्तान शब्द के जन्म की दास्तां-

चौधरी रहमत अली ने 28 जनवरी 1933 को ‘Now or Never’ की हैडलाइन के साथ एक बुकलेट निकाली थी. उस बुकलेट के चार पन्नों के अंदर पाकिस्तान के जन्म की आधारशिला रखी गई थी. इसी किताब में पहली बार ‘पाकिस्तान’ नाम के एक मुस्लिम देश की स्थापना का ज़िक्र किया गया था.

रहमत अली ने इसके बाद 1 अगस्त 1933 से पाकिस्तान नाम की साप्ताहिक पत्रिका निकालना शुरू किया. इसी के साथ उन्होंने ‘पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट’ की नींव रख दी. अपनी कल्पनाओं में संजोयें पाकिस्तान के सपने को उन्होंने परिभाषित भी किया.

P- Punjab

A- Afghania (North-West Frontier Province)

K- Kashmir

S- Sindh

Tan- BalochisTan

मोहम्मद अली जिन्ना और अल्लामा इकबाल भी भारत से पृथक एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र बनाने का ख़्वाब काफ़ी अरसे तक सोच कर बैठे थे मगर उनके ख़्वाब को हकीकत में धरातल पर लाने में रहमत अली ने सबसे बड़ा योगदान दिया. रहमत अली ने अपनी मैगजीन में पाकिस्तान का पृथक नक्शा भी बना कर छापा था.

चौधरी रहमत अली

1937 के चुनाव परिणामों में हार के बाद बौखलाई मुस्लिम लीग ने प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की मांग को और प्रखर कर दिया. जिन्ना ने उस दौर में कहा था कि वर्तमान हालातों में देश में तीन पार्टियां हैं-

1. ब्रिटिश सरकार

2. कांग्रेस

3. मुसलमान

अल्लामा इकबाल का कहना था कि अगर स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र नहीं बना तो यह मुल्क गृहयुद्ध की आग में जल उठेगा.

हमने क्या खो कर क्या पाया-

1947 में भारत और पाकिस्तान दो पृथक राष्ट्र बने. मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के पहले वजीर-ए-आजम बनाये गए. चौधरी रहमत अली का देखा हुआ ख़्वाब उस दिन पूरा हो गया था.

चौधरी रहमत अली

मगर जब आज के दौर में हम उस बंटवारे के परिणाम देखते हैं तो वास्तविकता शर्मसार कर जाती है. पाकिस्तान के मौजूदा हालात किसी से भी छुपे नहीं है. गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, कमजोर लोकतंत्र, अराजकता आदि समस्याओं ने वहां आम नागरिक के वे सभी सपने चकनाचूर कर दिए हैं जो कभी उनके पुरखों ने आजाद मुल्क की परिकल्पना के समय संजोए थे. हमें उस बंटवारे ने हमेशा के लिए आतंकवाद और घुसपैठ जैसी दिक्कतों से लड़ते रहने के लिए छोड़ दिया.

सपने चौधरी रहमत अली ने देखे, जिन्हें पूरा पाकिस्तान के पहले वजीरे आजम मोहम्द अली जिन्ना ने किया, लेकिन क्या जिस मुस्लिम मुल्क का सपना उन्होंने देखा था क्या आज उसकी हल्की सी भी झलक पाकिस्तान में दिखाई देती है। ये सवाल आज उतना ही गुमनाम है, जितना की पाकिस्तान के असल दाता का नाम।