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छोटे से कस्बे का लड़का बना टी-20 वर्ल्ड कप का हीरो – नाम है आर पी सिंह उर्फ़ रामू

आर पी सिंह

कहते है कोशिश करने वालो की हार नहीं होती.

इस बात को मानकर चलने वालो ने अक्सर अपनी मंजिल हासिल की ही है.

वैसे तो कई सेलिब्रिटी है, जिन्होंने शून्य से करोडो रुपयों तक का सफर तय किया है, पर कुछ नाम ऐसे होते है जिनके बारे में जानने कि प्रबल इच्छा होती है…

क्रिकेट की दुनिया के कामयाब नामो में एक नाम है टी-20 वर्ल्ड कप के हीरो आरपी सिंह का..

आज हम आपको आर पी सिंह से जुडी कुछ ऐसी रोचक बातें बताएंगे, जिन्हें जानकर आपके दिल में आरपी सिंह के लिए इज्जत और बढ़ जाएगी.

अच्छा लगेगा आपको ये जानकार कि आर पी सिंह यानि रूद्र प्रताप सिंह को उनके मित्र और परिवार वाले “रामू” नाम से बुलाते है. दरअसल बचपन से ही रामू यानि आर पी सिंह बेहद सीधे थे. उनके परिवार की माने तो आर पी सिंह इस धरती पर राम का अवतार लेकर उतरे है. आर पी सिंह झूट नहीं बोलते, सभी का सम्मान करते है, और बहोत मेहनती है. उनके इसी स्वभाव को देखकर उनके माता-पिता ने उनका नाम रामू रखा.

रुद्र प्रताप सिंह की कहानी शुरू होती है बाराबंकी जिले में स्थित गांव पूरे बला से.

आर पी सिंह के पिता शिव प्रसाद सिंह आईटीआई नामक कंपनी में काम करते थे पर उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा ठीक नहीं थी. उनकी माताश्री भी एक भवन निर्माण कंपनी में कार्यरत थी. ज्यादा पैसे कमाने की चाह में पूरा परिवार रायबरेली जिले के इन्दीरानगर में आ बसा. जहां पर आर पी सिंह का दाखिला पास के एक छोटे से स्कूल में करा दिया गया. यह स्कूल पूरा का पूरा छपरे का बना हुआ था. इस स्कूल में बारिश के दीनो में पानी तक चुआ करते थे.

जैसे जैसे सिंह परिवार की आर्थिक स्थिति  में सुधार आता गया, वैसे वैसे आर पी सिंह की पढ़ाई पर उनके माता-पिता ने ध्यान देना शुरू किया. आर पी सिंह के पिता ने उनका दाखिला पास के ही दुसरे प्रायवेट स्कूल “शांति निकेतन” में करा दिया, जहां पर उनकी पढ़ाई 8वी तक हुई. उसके बाद 12वी तक अपनी पढ़ाई उन्होंने राजकीय इंटर कोलेज में पुरी की.

आरपी को बचपन से क्रिकेट खेलने का शौक था. वो अक्सर पास वाले श्रीलंका नामक मैदान में खेलने जाया करते थे… और देखिये ना, यह एक इत्तेफाक ही तो है कि आरपी ने अपने इंटरनेशनल करियर की शुरुआत से लेकर वनडे के करियर में बेस्ट परफॉर्मेंस (35 रन देकर 4 विकेट) तक श्रीलंका के ही खिलाफ ही दिया.

अपने बेटे आरपी का क्रिकेट खेलने के प्रति जुनून देखकर, पिता शिवप्रसाद ने उन्हें क्रिकेट सिखने के लिए लखनऊ भेज दिया, जहां पहुचकर आरपी बन गए भारतियों के चहेते खिलाड़ी.

इन्ही युवाओं को देखकर सीख मिलती है कि हमें जिंदगी में कितने ही हार का सामना क्यू न करना पढ़े, हमें हार नहीं माननी चाहिए. क्योंकि हार के बाद जीत है.

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क्रिकेट