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हाँ मैं पंजाबी हूँ और खाना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है! कोई परेशानी है आपको?

sardar-cook

आओ जी ज़रा पहले आलू के गरमा-गरम परांठे-शरांठे हो जाएँ, बातें तो होती रहेंगी|

नहीं?

चलो जी कोई नहीं, पहले बातें ही कर लेते हैं|

जी हाँ, मैं एक ख़ालिस पंजाबी हूँ और खाना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है!

अब बताईये, इस से किसी को क्या परेशानी है?

अब इतनी मेहनत से किसान अन्न पैदा करता है, तो कोई उस अन्न को चटखारे लेके खाने वाला भी तो होना चाहिए? हाँ मैं मानता हूँ कि इंसान खाने के लिए नहीं जीता, जीने के लिए खाता है| पर अगर हम हर चीज़ को धूम-धड़ल्ले से मनाते हैं, जैसे कि स्कूल में फर्स्ट आना या खेल में टॉप करना तो फिर बेचारे खाने की क्या गलती है? उसके भी तो मज़े लेने चाहियें!

देखो जी, जब पेट भरा होता है ना, तो दिमाग चुस्त-दुरुस्त रहता है| चेहरे पर लाली रहती है, ख़ुशी अंग-अंग से छलकती है| और ख़ुश इंसान ही ज़िन्दगी में कुछ हासिल कर सकता है|

बड़ा बुरा लगता है जब लोग कहते हैं कि आप पंजाबी हो? मतलब मक्की की रोटी, सरसों का साग, बटर चिकन और लस्सी का गिलास? अब आप ही बताईये, इतना लज़्ज़तदार खाना आपके घर में रोज़ बनता हो तो आपको मज़ा आएगा कि नहीं? अब यह सब छोड़ के घास-फूस थोड़े ही खाएंगे? एक ही ज़िन्दगी है, जी भर के जियो! दिल तो बड़ा है हमारा, अगर थोड़ा-बहुत पेट भी बड़ा हो गया तो क्या फ़र्क पड़ता है?

वैसे एक बात साफ़ है, खुल्ला खाने की हिम्मत भी हर किसी के पास नहीं| अब आप चले जाइए दक्षिण भारत में, मौसम ऐसा है कि एक दिन भी पंजाबियों वाला खाना नहीं खा पाएंगे आप| पर हमें देख लीजिये, गर्मी हो या सर्दी, देसी घी में बना लबाबदार खाना कभी भी खा सकते हैं|

हाँ एक बात ज़रूर मानूँगा कि इतना घी-तेल से बना खाना खाके भाग-दौड़ वाला काम नहीं किया तो सेहत पर बुरा असर होगा| पर इसका यह मतलब बिलकुल नहीं कि खाना-पीना कम कर दो|

अरे यार जी भर के खाओ और जी भर के काम करो!

और जो लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, उनसे सिर्फ एक बात कहूँगा: एक बार दिल खोल के खाना खाके तो देखो, ज़िन्दगी बदल जायेगी| क्या राशन की तरह खाना, ऐसे खाओ जैसे मुफ़्त में बँट रहा है!

आओ जी फिर, परांठे ठन्डे हो रहे हैं और लस्सी गरम! टूट पड़ो भाई साहब!