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पुर्तगालियों ने भी तब भारत देश को खूब लूटा था ! गोवा में हुए कत्लेआम की सनसनीखेज दास्तान

पुर्तगालियों

गोवा प्राचीन समय में भारत की संस्कृति की मुख्यधारा रहा है.

ऐसा कहा जाता है कि यह कभी हिन्दुओं का प्रसिद्ध केंद्र होता था. अगर आप कुछ पुराने इतिहास को देखते हैं तो आप पढ़ सकते हैं कि इसे पश्चिम का काशी भी कहते थे. यहाँ पर अनेक पूजा स्थल और धार्मिक स्थान थे.

आपको सबसे बड़ी हैरानी तब होगी जब आप जानेंगे कि यह स्थान शिव और पार्वती जी की पूजा का मुख्य स्थान हुआ करता था. तभो तो शायद इसको गोवाराष्ट्र या गोपाराष्ट्र बोला जाता था.

लेकिन तभी यहाँ पर समुद्र के रास्ते से पुर्तगालियों की एंट्री हुई.

यह वह समय था जब मुस्लिम शासक इन पुर्तगालियों से दोस्ती कर रहे थे और इनकी नजर हमारे धन पर थी. भारतीय जनता पर पुर्तगालियों ने अत्याचार करना शुरू कर दिया.

कहते हैं कि पुर्तगालियों ने गोवा को ही अपनी राजधानी बना लिया था.

जब गोवा की लूट शुरू हुई

डा. सतीश चन्द्र मित्तल इस बारे में लिखते हैं कि पुर्तगालियों ने कालीकट को खूब लूटा. इनके एक हाथ में तलवार थी और दूसरे हाथ में धर्मक्रास था. जिसका सीधा सा मतलब यही था कि या तो इसाई बनो या फिर मरो.

अधिकतर हिन्दू मंदिरों को तोड़ दिया गया था. लोगों को इसाई बनाया जा रहा था. तभी पुर्तगाली लोगों को यहाँ का सोना नजर आया. तब इन्होंने धर्म का काम कुछ दिनों के लिए रोक दिया और बस सोने पर ही ध्यान दिया. सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश को जो भी आ रहा था वह लूट रहा था.

बाद में पुर्तगाली लोगों को लगा कि अब देश के इस हिस्से पर कब्ज़ा करना ही बेहतर है. इन लोगों ने अधिक प्राप्त करने सोच को छोड़कर बस एक निश्चित क्षेत्र की और बस ध्यान लगाये रखा.

गोवा को रोम बनाया गया

कुछ इतिहासकार लोगों ने इस बात के पक्के सबूत रखे हैं कि गोवा को तब रोम बनाने की कोशिश की गयी और काफी हद तक यह लोग इस साजिश में कामयाब भी हो गये. हिन्दुओं के अधिकतर मंदिरों को तोड़ दिया गया था और धार्मिक ग्रंथों में आग लगा दी गयी थी. लाखों लोगों का धर्म परिवर्तन कर इसाई बना दिया गया.

आज अगर रोम एक खुशहाल देश है और वहां के लोग अच्छी जिंदगी जी रहे हैं तो उसमें कहीं न कहीं इसी भारतीय लूट का हाथ है.

1846 में एक अंग्रेजी लेखक रिचर्ड बर्टन को तब का गोवा भूतों का देश नजर आया था. वहां जिस तरह से हिन्दुओं का कत्लेआम हो रहा था वह भूतों के देश में ही हो सकता था.

(प्रस्तुत लेख डा.सतीश चन्द्र मित्तल जी द्वारा उपलब्ध इतिहास की जानकारी के आधार पर लिखा गया है)