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पितृ पक्ष से जुड़ी छोटी-छोटी मगर ये खास बातें हर किसी को पता होनी ही चाहिए !

पितृ पक्ष

अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उन्हें प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष यानी श्राद पक्ष को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.

पितृ पक्ष में लोग श्राद्ध कर्म द्वारा अपने पूर्वजों यानी पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार पिंडदान, तर्पण करते हैं.

अगर किसी को अपने पितरों की मृत्यु की तिथि मालूम नहीं होती है तो वो पितृ पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन अपने समस्त पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस दौरान सूर्य दक्षिणायन होता है जो पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग प्रदान करता है.

इस साल 6 सितंबर यानी पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरूआत हो रही है. जब 16 दिनों तक लोग अपने पितरों के उद्धार और मुक्ति के लिए श्रद्धापूर्वक पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कार्य कर सकते हैं और ऐसा करने वाले पर ना सिर्फ उनके पितृ प्रसन्न होते हैं बल्कि उन्हें पितृदोष से भी मुक्ति मिलती है.

आज हम आपको पितृ पक्ष से जुड़ी कुछ खास और जरूरी बातें बताने जा रहे हैं जिन्हें ध्यान में रखकर आप ना सिर्फ अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं बल्कि पितृ दोष से भी मुक्ति पा सकते हैं.

श्राद्ध से जुड़ी है ये खास मान्यता

मृतक के लिए श्रद्धा से किए गए तर्पण और पिंडदान को ही श्राद्ध कहा जाता है और ग्रंथों में तीन पीढि़यों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है.

मान्यताओं के अनुसार यमराज हर साल श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं. ताकि वो अपने परिवार वालों के पास जाकर श्राद्ध कर्म को ग्रहण कर सकें.

बताया जाता है कि श्राद्ध का सबसे अच्छा वक्त तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे यानी दोपहर के बाद ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए. क्योंकि सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंच पाता है.

पितृ पक्ष में श्राद्ध कार्य के हैं खास मायने

पितृ पक्ष में देवकार्य से भी ज्यादा पितृ कार्य को महत्व दिया जाता है. वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण और विष्णु पुराण समेत कई धार्मिक ग्रंथों में भी श्राद्ध कर्म के महत्व का वर्णन मिलता है.

पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के बीच अपने घर परिवार के पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए जो श्राद्ध कार्य किए जाते हैं उससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो अमावस्या तिथि के दिन वे अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं और पितृदोष की शांति करा सकते हैं.

पितृ पक्ष में नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य

तैत्रीय संहिता के मुताबिक पूर्वजों की पूजा हमेशा दाएं कंधे में जनेऊ डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके ही करनी चाहिए.

श्राद्ध पक्ष में सारे पितृ पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं इसलिए इस दौरान किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए. इस समय सगाई, शादी और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. लेकिन एक मान्यता के अनुसार श्राद्ध में खरीदारी करना अशुभ नहीं बल्कि शुभ माना जाता है.

कौए को माना जाता है पितरों का रुप

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कौए को पितरों का ही रुप माना जाता है. कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रुप धारण करके नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं. यही वजह है कि श्राद्ध का प्रथम अंश हमेशा कौओं को अर्पित किया जाता है.

इन स्थानों पर पिंडदान का है विशेष महत्व

शास्त्रों में पिंडदान के लिए भारत की तीन जगहों को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए सबसे पहले स्थान पर आता है बद्रीनाथ, जहां ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष से मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है.

भारत का दूसरा प्रसिद्ध स्थान है हरिद्वार, जहां नारायणी शिला के पास लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान कराने के लिए आते हैं.

पिंडदान के लिए तीसरा मशहूर स्थल है गया, जहां साल में एक बार 16 दिनों के लिए पितृपक्ष मेला लगता है. गया को लेकर मान्यता है कि पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है.

बहरहाल हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितृ परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र-पौत्रों के यहां आते हैं.

कहा जाता है कि श्राद्ध का पितरों के साथ बहुत ही गहरा संबंध है क्योंकि अपने पितरों तक आहार और अपनी श्रद्धा पहुंचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध ही है.