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चुनाव के बाद और खस्ताहाल हो सकती है पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, नई सरकार की बड़ी चुनौती

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था – पाकिस्तान न सिर्फ राजनीतिक, बल्कि आर्थिक रूप से भी बिल्कुल अस्थिर हो चुका है, ऐसे में लगता है कि चुनाव के बाद कहीं देश पूरी तरह से कंगाल न हो जाए, या फिर कर्ज के बोझ तले इतना न दब जाए कि फिर कभी उठ ही न पाए.

पाकिस्तान अपनी करनी की सजा भोग रहा है.

मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी संगठनों की मदद करके उसने खुद ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया और अब हालात ये कि सरकार के पास चुनाव में खर्च करने के भी पैसे नहीं है.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था –

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार भी तेजी से घट रहा है. ऐसे में अटकलें हैं कि पाकिस्तान चुनाव के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से कर्ज मांग सकता है. देश में भुगतान संतुलन संकट खड़े होने की भी आशंका है, इसलिए पाकिस्तान आईएमएफ से मदद मांग सकता है. इससे पहले पाकिस्तान 2013 में मुद्राकोष के पास गया था.

वैसे पाकिस्तान को आर्थिक बदहाली ने निकालने के लिए उसका दोस्त चीन मदद कर रहा है. चीन ने पाकिस्तान को एक अरब डॉलर की आर्थिक मदद दी है. मई 2017 में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 16.4 अरब डॉलर था, जो इस साल घटकर 9.66 अरब डॉलर रह गया है. ऐसे में पाकिस्तान ने अपनी विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने के लिए चीन से एक से दो अरब डॉलर तक का कर्ज लेने की बात कही थी. चीन ने दोस्ती के नाते पाकिस्तान को कर्ज दे तो दिया है, मगर इससे पाकिस्तान ऐसा लगता है कि कर्ज के कभी न खत्म होने वाले बोझ के नीचे बुरी तरह दबता जा रहा है.  आपको बता दें कि अब तक चीन पाकिस्तान को करीब 5 अरब डॉलर का कर्ज दे चुका है, अब पाकिस्तान ये कर्ज कभी लौटा पाएगा भी या नहीं इस पर सवालिया निशान लगा हुआ है.

वैसे जानकारों का मानना है कि चरमराई पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए चीन की मदद काफी नहीं है. 25 जुलाई को देश में चुनाव हो जाने के बाद नई सरकार IMF से दूसरे बेलआउट पैकेज की मांग करेगा.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और आर्थिक स्थिति कभी अच्छी नहीं रही है, बावजूद इसके पाकिस्तान की सरकार आम जनता की ज़रूरतों और बुनियादी सुविधाओँ को सुधारने की बजाय आतंकवाद को पोषण देने और सेना पर ही हमेशा ज़्यादा खर्च करती आई है और उसी का नतीजा है उसकी खस्ताहाल अर्थव्यवस्था. अब आम चुनावों के बाद नई सरकार के लिए अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधारना बहुत बड़ी चुनौती होगी.