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दीपावली से पहले क्यों हो रही है लक्ष्मी के वाहनों की पहरेदारी !

उल्लू की बलि

कल तक लोग उल्लू को देखकर दूर भागते थे लेकिन आजकल उल्टा हो रहा है खुद उल्लू इंसान को देखकर दूर भाग रहे हैं. हालात यह है कि उल्लू को ही जान के लाले पड़ रहे हैं.

क्योंकि इन दिनों देश के कई राज्यों में कुछ लोगों को जहां कहीं भी उल्लू नजर आ रहे हैं वे उसको पकड़ने की फिराक में लग जाते हैं.

दरअसल, दीपावली आने वाली है और दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं. इसके लिए वह उल्लू की बलि देते हैं. इसको देखते हुए वन विभाग ने लक्ष्मी जी के वाहन उल्लू पर निगरानी बढ़ा दी है.

इसके लिए टीमे गठित कर छापे मारे जा रहे हैं. मेरठ, मुरादाबाद, देहरादून और पटना सहित देश के कई शहरों में तंत्र क्रिया करने वालों लोगों पर नजर रखी जा रही है.

दीपावली को देखते हुए देश में उल्लू की बलि की वज़ह से उल्लुओं की मांग बढ़ गई है. पक्षियों का व्यापार करने वाले एक उल्लू को 2 से 20 हजार रूपए तक में बेच रहे हैं. यही नहीं, तंत्र क्रिया करने वाले लोगों ने इसके लिए काफी पहले से एडवांस पैसे पक्षी विक्रेताओं के पास जाम करा रखे हैं.

बहराल, पहले यदि किसी आदमी को उल्लू दिखाई दे जाए तो उसे अशुभ माना जाता था लेकिन इन दिनों अगर उल्लू को कोई आदमी दिख जाए तो समझों वह उसके लिए अशुभ है.

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बताया जाता है कि उल्लू के वजन, आकार, रंग, पंख के फैलाव के आधार पर उसका दाम तय किया जाता है. लाल चोंच और शरीर पर सितारा धब्बे वाले उल्लू का रेट 25 हजार रुपए से भी अधिक है.

जबकि वन अधिनियम के तहत उल्लु संरक्षित प्रजाति है और उसका शिकार करना दंडनीय अपराध है. लेकिन बावजूद इसके चंबल घाटी के मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक से उल्लू की तस्करी की जा रही है.

तांत्रिकों का कहना है कि उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा एवं मांस खिलाया जाता है. वशीकरण और सम्मोहन इत्यादि साधनाओं की सफलता के लिए उल्लू की बलि दी जाती है.

आमतौर पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग ही पूजा में उल्लुओं का प्रयोग करते हैं. इस पूजा के लिए लाखों रूपए तक खर्च करते हैं. दिल्ली एवं मुंबई जैसे महानगरों में बैठे बड़े-बड़े कारोबारी आजकल इन तस्करों के जरिए संरक्षित जीव की तस्करी में जुट गए हैं.

तंत्र क्रिया के अतिरिक्त उल्लू को उपयोग लोग आयुर्वेदिक इलाज में भी करते हैं. इसके चोंच और नाखून को जलाकर तेल तैयार होता है जिससे गठिया ठीक होता है. इसके मांस का प्रयोग यौनवर्धक दवाओं में किया जाता है.

यही वजह है कि दीपावली के ठीक पहले के कुछ महीनों में उल्लू की तस्करी काफी बढ़ जाती है.

हर साल भारत के विभिन्न हिस्सों में दीपावली की पूर्व संध्या पर उल्लू की बलि के सैकड़ों मामले सामने आते हैं.

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