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जानिये प्रधानमंत्री की इमेज ख़राब करने के लिए किस तरह से चलाई जा रही है मोदी विरोधी मुहीम

मोदी विरोधी एजेंडा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी उन्हें नीचा दिखाने के लिए किस हद तक नीचे गिर सकते हैं यह तो सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पता ही चल गया होगा .

लेकिन क्या आपको मालूम है कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि धुमिल करने के लिए जो मोदी विरोधी एजेंडा चलता है.

वह कहां से और क्यों चलता है?

कौन लोग है इस पूरी मुहिम के पीछे?

चलिए समझते है इस पूरे मोदी विरोधी एजेंडा के राजनीतिक षडयंत्र को.

दरअसल, देश में मोदी विरोध के नाम जो खेल चल रहा है और इसे समझने के लिए आप को पीछे जाना होगा.

मई 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है यह बात विपक्ष को हजम नहीं हो रही है.

क्योंकि नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार विपक्षी दलों के मुस्लिम तुष्टीकरण को आइना दिखाकर देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है, इससे विपक्षियों को लगता है कि यदि देश में हिंदुत्व के एजेंडे को आगे कर राज्यों में भी भाजपा की सरकारे बननी शुरू हो गई तो उनके तो दुर्दिन शुरू हो जाएंगे.

इसलिए मोदी के हिंदुत्व की काट बहुत जरूरी है. इसके लिए एक ही तरीका है हिंदुओं में ही सेंध लगाकर उनसे दलित व अन्य जातियों को तोड़ दिया जाए. इस काम के लिए कांग्रेस ने वांमपथियों के साथ मिलकर एक कुचक्र रचा.

जिसकी जिम्मेंदारी सौंपी गई वामपंथी छात्र ब्रिगेड को. प्रयोगशाला बनाया गया विश्वविद्यालयों और काॅलेजों को. जवाहरलाल  नेहरू विश्वविद्यालय के वामपंथी छात्रों ने इसको लीड किया. कभीअभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर तो कभी दलित राजनीति के नाम पर.

मोदी की छवि को हर स्तर पर नुकसान पहुंचाकर कैसे भाजपा को रोका जाए, इसके लिए शुरू में विपक्ष ने पूरी ताकत से मुस्लिम कार्ड खेला. असहिष्णुता और अवार्ड वापसी को खुब उछाला लेकिन उसमें उनको ज्यादा सफलता नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने अपनी रणनीति बदली और विपक्ष ने मुस्लिमों को पीछे कर दलितों को मुद्दा आगे कर भाजपा को घेरने की रणनीति बनाई.

कैसे? हिुदुत्व की काट के लिए जो रणनीति बनाई थी उसका प्रयोग किया हैदराबाद विश्वविद्यालय में. हालांकि मद्रास आईआईटी और अन्य विश्वविद्यालयों में भी ये प्रयोग किए गए थे लेकिन उनको ज्यादा सफलता नहीं मिली थी.

वामपंथी छात्र संगठनों ने काॅलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रों के बीच जाकर भाजपा और मोदी को दलित विरोधी साबित करने की मुहिम चलाई. हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमूला की आत्महत्या को दलित उत्पीड़न से जोड़कर मोदी की छवि दलित विरोधी बनाने की कोशिश हुई. जांच में पता चला कि रोहित दलित था ही नहीं.

दरअसल, रोहित वेमुला से लेकर गुजरात में उना दलित कांड को एक सोची समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ाया गया. जांच में जहां रोहित के दलित होने की बात फर्जी निकल गई वहीं उनाकांड को अंजाम देने में भी कांग्रेस से संबधित सरपंच का नाम सामने आ रहा है.

बहराल, इसके बाद जब देखा कि प्रधानमंत्री मोदी दुनिया में भारत की अलग और मजबूत छवि पेश कर देश में राष्ट्रवाद को धार देने में लगे हैं तो उसी समय विपक्ष ने उसकी काट के लिए जेएनयू में देश विरोधी नारे लगवा दिए ताकि मोदी की छवि को धुमिल किया जा सके.

क्योंकि इसके बाद विरोधी मोदी पर आरोप लगाते कि कश्मीर की आजादी और देश विरोधी नारे पहले कश्मीर घाटी तक ही सीमित थे लेकिन मोदी के दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद राजधानी में भी ये नारे लगने लगे.

मोदी दुनिया घुमने में लगे हुए हैं और दुश्मन दिल्ली में धुस आए हैं. देश हाथ से निकला जा रहा है.

विपक्ष की रणनीति है कि दलित और मुस्लिमों को एक पाले में रखकर ही भाजपा की राजनीति बढ़त को रोका जा सकता है. उसकी यह रणनीति बिहार में सफल भी रही. उसके बाद उसे लगने लगा है कि पंजाब और उत्तर प्रदेश इस कार्ड को खेलकर मोदी की बढ़त को रोका जा सकता है.

मोदी विरोधी एजेंडा में विपक्ष इतना आगे निकल गया कि वह अब सेना और देश को भी मोदी से जोड़कर उन्हें नीचा दिखाने से भी नहीं चूक रहा है.