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सैनेटरी पैड्स को जीएसटी के दायरे से बाहर करना सिर्फ एक मज़ाक है!

अगले लोकसभा चुनाव में कुछ महीनों की ही समय रह गया है, ऐसे में मोदी सरकार की पूरी कोशिश रहेगी की पिछली बार की तरह इस बार भी वो पूर्ण बहुमत से जीत दर्ज करे और लोगों का उसपर फिर वही विश्वास बना रहे, इसके लिए सरकार ने छोटे-छोटे कदम उठाने भी शुरू कर दिए है. इसी कड़ी में सराकर ने सैनेटरी पैड्स को जीएसटी के दायरे से बाहर तो कर दिया, मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि बावजूद इसके पैड्स सस्ते नहीं होने वाले.

पिछले साल सरकार ने जब महिलाओं की बुनियादी ज़रूरत सैनेटरी पैड्स को जीएसटी के दायरे में रखा तभी से इसका विरोध शुरू हो गया था और कई महिला अधिकार संगठनों ने एक साल तक सरकार के इस फैसलने के खिलाफ आंदोलन चलाया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने पैड्स पर से जीएसटी हटा दिया, वैसे इस कदम को आगामी चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है, मगर मोदी सरकार बहुत चतुर है. जीएसटी के दायरे से बाहर होने के बाद भी महिलाओं को सस्ते पैड्स नहीं मिलने वाले, उन्हें यदि फायदा होगा भी तो वो सिर्फ 5 पैसे का.

जी हां, ज़्यादा हैरान होने की ज़रूरत नहीं है, हम आपको इसकी वजह भी बताते हैं. दरअसल, मोदी सरकार ने सैनेडरी पैड्स पर से तो जीएसटी हटा दिया, लेकिन पैड बनाने के लिए जो कच्चा माल इस्तेमाल में आता है उस पर तो अब भी टैक्स लगता है ऐसे में कीमत में बहुत फर्क नहीं आने वाला.

सस्ते सैनिटरी पैड्स बनानेवाली कंपनी सरल डिजाइन की संस्थापक सुहानी मोहन बताती हैं, ‘हमें लगता है कि ग्राहकों के लिए कीमत में आनेवाला अंतर बहुत छोटा होगा.’ सुहानी के आकलन से पता चलता है कि ग्राहकों को 10 पैड्स वाले पैक पर प्रति पैड 5 पैसे की बचत हो पाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि जीएसटी फ्री होने के बाद पैड बनानेवाली कंपनियां रॉ मटीरियल्स पर चुकाए गए टैक्स पर क्रेडिट क्लेम नहीं कर पाएंगी.

देश में सैनिटरी पैड्स का बाजार अभी 4,500 करोड़ रुपये का है जबकि हकीकत यह है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं अब भी पैड्स का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब जब पैड्स पर जीएसटी खत्म कर दिया गया है तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां (MNCs) पैड्स को सबसे कम स्लैब के टैक्स दायरे में रखे जाने की सोच रही होंगी ताकि उनके लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करने का रास्ता बचा रहता.

जीएसटी काउंसिल के फैसले का ग्राहकों को इसलिए भी बड़ा फायदा नहीं मिल पाएगा क्योंकि जॉनसन ऐंड जॉनसन और पीऐंडजी जैसी बड़ी कंपनियां भारत जैसे बड़े बाजार में ब्रैंड के नाम का इस्तेमाल करने के लिए अपनी-अपनी पैरंट कंपनियों को रॉयल्टी देते रहेंगे. रॉयल्टी की इस रकम पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है जिसकी वसूली ग्राहकों से ही करने का प्रयास होगा.

तो पैड्स के जीएसटी के दायरे से बाहर रखने की खबर पर अब आपको ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ये बस एक मज़ाक की तरह ही है, जब आम महिलाओं को सस्ते पैड्स मिलेंगे ही नहीं, तो क्या फायदा जीएसटी हटाने का?