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जानिये ऋषि मुनियों का हमेशा जवान बने रहने का चमत्कारिक तरीका

नाद योग
दोस्तों जिंदगी भले हीं कितनी भी मुश्किलों भरी क्यों ना हो, लेकिन हर व्यक्ति चाहता है कि वो हमेशा खूबसूरत और जवान बने रहे.
लेकिन आज के वैज्ञानिक दौर में चीजें इतनी अप्राकृतिक हो गई है की लाख कोशिशों के बावजूद लोगों की उम्र घटती जा रही है. समय से पहले लोगों की जवानी खत्म होती जा रही है. ऐसे में सोचने वाली बात है कि आखिर ऐसा क्या करें कि हम समय से पहले अपनी जवानी ना गवाएं.
इसके लिए हमें जो सबसे सही तरीका लगा. वो ये कि हम अपने भूत में एक बार झांक कर देखें. और इस बात को जाने कि आखिर ऋषि मुनि ऐसा क्या करते थे, कि वो हमेशा जवान बने रहते थे? आज हम इसी बात पर चर्चा कर रहे हैं.
दरअसल ऋषि मुनि नाद योग के प्रभाव से हमेशा जवान बने रहते थे.
तो चलिए जानते हैं इस नाद योग के बारे में पूरी सच्चाई.
नाद योग –
नाद योग
योग सबसे आसान माध्यम होता है चक्र जागरण के लिए.
कुंडलिनी के सात चक्र होते हैं और चक्रों में से पांचवा चक्कर मतलब कि विशुद्धि चक्र शुद्धिकरण का केंद्र होता है. इसका सीधा संबंध जीवन चेतना के शुद्धिकरण और संतुलन से होता है. ऋषि मुनियों और योगियों ने इसे विष और अमृत के केंद्र के रूप में भी परिभाषित करते हुए बताया है. विशुद्धि चक्र की साधना करने से जीवन में अनेकों विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियों का एहसास होता है. इससे साधक के ज्ञान में काफी बढ़ोतरी होती है.
जीवन आनंदमय हो जाता है.
कहां होता है ये चक्र
यह चक्र गले के ठीक पीछे ग्रेव जालिका में स्थित होता है. थायराइड ग्रंथि पर या गले के सामने इसका क्षेत्र है. विशुद्धि का संबंध ग्रसनी व स्वर यंत्रिका जालकों से शारीरिक स्तर पर है. योग शास्त्रों में चक्र को प्रतिकात्मक रूप से भूरे रंग के कमल के जैसा बताया है. जबकि कुछ साधकों ने इसके बारे में बताते हुए कहा है कि वह 16 पंखुड़ियों वाले बैंगनी रंग के कमल की तरह है. 16 पंखुड़ियां केंद्र से जुड़ी नाड़ियों से संबंध रखता है. इसके हर पंखुड़ी पर चमकदार सिंदूरी रंग से संस्कृत का एक अक्षर लिखा हुआ है – अं, आं, इं, उं, ऊं, लृं, लृं, एं, ऐं, ओं, औं, अं, अ: ।
इसे आकाश तत्व का प्रतीक का गया है.
 
नाद योग से कैसे जागृत होता है चक्र
नादयोग, विशुद्धि चक्र के जागरण की सरल साधना है.
योग शास्त्रों में मूलाधार स्पंदनों और विशुद्धि के दो आधार भूत केंद्र माने हैं. नाद योग की प्रक्रिया में चेतना के उधरवीकरण का संबंध सीधे तौर पर संगीत के स्वरों से होता है. सभी स्वरों का संबंध किसी एक चक्र विशेष की चेतना के स्पंदन स्तर से संबंधित है. बहुधा वो स्वर जो भजन-कीर्तन व मंत्र के माध्यम से उच्चारित होते हैं.  सा रे गा मा की ध्वनि तरंगों का मूलाधार सबसे पहला स्तर एवं विशुद्धि पांचवें स्तर का है. इसमें से निकलने वाली मूल ध्वनियां ही चक्रों का संगीत है. विशुद्धि यंत्र की 16 पंखुड़ियों पर चित्रित ध्वनियां हीं मूल ध्वनियां हैं.
विशुद्धि चक्र से इसका प्रारंभ होता है. सीधे तौर पर दिमाग से इनका संबंध है. कीर्तन का अभ्यास या नाद योग करने से मन पूरी तरह शुद्ध हो जाता है.
कौन है इस चक्र के देवता
सदाशिवम विशुद्धि चक्र के देवता हैं.
एकदम श्वेत रंग है इनका.
उनकी दस भुजाएं, पांच मुख और तीन आंखें हैं. वो एक व्याघ्र चर्म लपेटे हैं. उनकी देवी चंद्रमा से प्रवाहित होने वाले अमृत के सागर से भी अधिक पवित्र शाकिनी देवी  हैं. जिनके परिधान पीले रंग के हैं. उनके चार हाथों में से सभी में एक धनुष तथा अंकुश है. इसका प्रवाह हमेशा ऊपर की तरफ होता है. यह आज्ञा चक्र के साथ मिलकर विज्ञानमय कोष के आधार पर निर्माण का काम करता है. यहीं से अतींद्रिय विकास शुरू होता है. शास्त्रों में स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख किया गया है कि सिर के पिछले भाग में बिंदु स्थित चंद्रमा से अमृत का स्त्राव हमेशा होता हीं रहता है. यही अमृत बिंदु व्यक्तिगत चेतना में जाकर गिरता है. इस दिव्य द्रव को अनेकों नाम से जानते हैं. सोम नाम तो आपने सुना हीं होगा. इसे ही वेदों में सोम कहा गया है. विशुद्धि और बिंदु के मध्य में एक छोटा अति इंद्रिय स्थान है, इसे ललना चक्र कहा जाता है. जब अमृत बिंदु झरता है, तो ललना चक्र में इसका भंडारण होता है.
कुछ अभ्यासों के बल पर, जैसे खेचरी मुद्रा इत्यादि से अमृत ललना से बहकर शुद्धिकरण के केंद्र विशुद्धि चक्र तक जाता है और जब यही विशुद्धि जाग्रत रहता है, तब वह दूसरी तरफ वहीं रुकता है. और वहीं पर उसका प्रयोग हो जाता है.
इसी के साथ इसका स्वरूप अमरत्व प्रदायी अमृत के रूप में बदलता है. ऋषि मुनियों के हमेशा जवान रहने का रहस्य यही विशुद्धि चक्र के जागरण से संबंध रखता है.
क्या होता है इस चक्र के जागरण से
इस चक्र के जागरण से कायाकल्प हो जाता है. साथ ही होती है शक्ति की प्राप्ति. जो कभी खत्म नहीं होती. और ज्ञान से परिपूर्ण होती है. व्यक्ति को भूत, भविष्य का ज्ञान होने लग जाता है. मानसिक क्षमताओं में तेजी से विकास होता है. जिस कारण उसके श्रवण की शक्ति काफी तेज हो जाती है. मन किसी भी तरह के गलत विचार व भय और आसक्ति से मुक्त हो जाता है. ऐसा व्यक्ति जिंदगी की हर परेशानियों से हमेशा के लिए मुक्त होकर अपने साधना के पथ पर आगे बढ़ता रहता है. और यहीं मिलती है उसे सारी सामर्थ्य. जिसके आधार पर मिल सके आज्ञा चक्र की सिद्धि.
तो दोस्तों अगर आप भी हो जाना चाहते हैं जीवन के सारे कष्टों से दूर. और करना चाहते हैं अपनी कायाकल्प. तो देर किस बात की है आप भी शुरु कर दीजिए, नाद योग की तैयारी.
पूरी जिंदगी बने रहेंगे जवान.

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