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शास्त्रों में महिलाओं के मासिक धर्म के पीछे की एक रोचक कहानी!

origin of menstruation

महिलाओं और लड़कियों को हर महीने आने वाले मासिक धर्म का उल्लेख पुराण में आता है.

यह बताना तो मुश्किल है कि यह कितना सत्य है किन्तु यहाँ साफ़ लिखा गया है कि किसी की भूल की सजा महिलाओं को दी गयी है जिसे वह दर्द के रूप में झेलती हैं.

यह कथा साबित करती है कि इंद्र देव एक स्वार्थी देवता थे जो सिर्फ अपने फायदे के लिए किसी को भी प्रयोग करना जानते थे.

एक देवता क्या अपने गुरू की हत्या कर सकता है या हत्या करते वक़्त इनको सोचना नहीं चाहिए था ?

आइये जानते हैं क्या हुआ था तब जब इंद्र असुरों से अपनी राज्य वापस पाना चाहते थे –

मासिक धर्म के पीछे की कथा
भगवत पुराण में एक कथा बताती है कि एक बार ‘बृहस्पति’ जो देवताओं के गुरु हैं, वह इन्द्र से काफी नाराज़ हो गए. इस नाराजगी के चलते असुरों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया और तब इन्द्र को अपनी गद्दी छोड़ कर भागना पड़ा था.

असुरों से खुद को बचाते हुए इन्द्र सृष्टि को बनाने वाले भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे और उनसे मदद मांगने लगे. तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि उन्हें एक ब्रह्म-ज्ञानी की सेवा करनी चाहिए, यदि वह प्रसन्न हो जाए तभी उन्हें उनकी गद्दी वापस प्राप्त होगी.

ब्रह्मा जी की आज्ञा को मानकर इन्द्र एक ब्रह्म-ज्ञानी की सेवा में लग जाते हैं.

लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि इस ज्ञानी की माता भी असुर थी इसलिए उसके मन में असुरों के लिए एक विशेष स्थान था.

इन्द्र देव द्वारा अर्पित की गई सारी हवन की सामग्री जो देवताओं को चढ़ाई जाती है, वह ज्ञानी उसे असुरों को चढ़ा रहा था. इससे उनकी सारी सेवा भंग हो रही थी. जब इन्द्र देव को सब पता लगा तो वे बेहद क्रोधित हो गए और उन्होंने उस ब्रह्म-ज्ञानी की हत्या कर डाली.

एक गुरु की हत्या करना घोर पाप था, जिस कारण उन पर ब्रह्म-हत्या का पाप आ गाया. ये पाप एक भयानक राक्षस के रूप में इन्द्र का पीछा करने लगा. किसी तरह इन्द्र ने खुद को एक फूल के अंदर छुपाया और एक लाख साल तक भगवान विष्णु की तपस्या की.   तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने इन्द्र देव को बचा तो लिया लेकिन उनके ऊपर लगे पाप की मुक्ति के लिए एक सुझाव दिया.

इसके लिए इन्द्र को पेड़, जल, भूमि और स्त्री को अपने पाप का थोड़ा-थोड़ा अंश देना था. इन्द्र के आग्रह पर सब राज़ी तो हो गए लेकिन उन्होंने बदले में इन्द्र देव से उन्हें एक वरदान देने को कहा.   सबसे पहले पेड़ ने उस पाप का एक-चौथाई हिस्सा ले लिया जिसके बदले में इन्द्र ने उसे एक वरदान दिया. वरदान के अनुसार पेड़ चाहे तो स्वयं ही अपने आप को जीवित कर सकता है.

इसके बाद जल को पाप का हिस्सा देने पर इन्द्र देव ने उसे अन्य वस्तुओं को पवित्र करने की शक्ति प्रदान की. यही कारण है कि हिन्दू धर्म में आज भी जल को पवित्र मानते हुए पूजा-पाठ में इस्तेमाल किया जाता है.

तीसरा पाप इन्द्र देव ने भूमि को दिया इसके वरदान स्वरूप उन्होंने भूमि से कहा कि उस पर आई कोई भी चोट हमेशा भर जाएगी.

अब आखिरी बारी स्त्री की थी.

इस कथा के अनुसार स्त्री को पाप का हिस्सा देने के फलस्वरूप उन्हें हर महीने मासिक धर्म होता है. लेकिन उन्हें वरदान देने के लिए इन्द्र ने कहा की “महिलाएं, पुरुषों से कई गुना ज्यादा काम का आनंद उठाएंगी!”.

स्वार्थी देवता इंद्र
अब बेशक इन्द्र ने बोला की महिलाओं को सेक्स के समय काफी अधिक आनंद आएगा किन्तु इस बात का अधिकार उनको किसने दिया था कि वह महिलाओं को उनसे बिना पूछे यह सजा दें. खुद को बजाने के लिए उन्होंने, पेड़, जल,जमीन  और औरतों का उपयोग किया है जो बताता है कि इंद्र एक स्वार्थी देवता रहे हैं.