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आज से तीन साल पहले मुजफ्फनगर में भड़के दंगों की असली वजह क्या थी ! 

मुजफ्फनगर

मुजफ्फनगर के दंगे –

मुजफ्फरनगर जिले में 7 सितंबर को नंगला मंदौड़ की जाट महा सभा की रैली से लौट रहे लोगों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन पर एके 47 जैसे हथियारों से भी हमला हो सकता है.

हालांकि प्रशासन ने एके 47 से हमले को नकारा था, लेकिन हमले में घायल लोगों के बयानों और गांव से तलाशी के दौरान बरामद एके 47 की गोलियों से इसकी पुष्टि हुई थी.

बताया जाता है कि तलाशी के दौरान पुलिस को हमले में प्रयुक्त विदेशी पिस्टल और स्वचालित हथियारों की बरामदगी को सत्ताधारी आकाओं के इशारे पर दबा दिया था. तलाशी अभियान में शामिल रहे जिले के एक आला पुलिस अधिकारी ने इससे खफा होकर खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर मुजफ्फरनगर से अपना तबादला करा लिया था. इसके पहले भी मुजफ्फरनगर के डीएम और एसएसपी को एक सुमदाय विशेष के मोहल्लों में तलाशी लेने से रोका गया था लेकिन जब उन्होंने सत्ता के रसूख को मानने से इनकार किया तो उसी समय उनको तबादले का नोटिस थमाकर रात में जिले की सीमा से बाहर जाने के लिए कह दिया गया.

आज से ठीक तीन साल पहले 7 सितंबर 2013 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फनगर जिले में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था. इस दंगे में करीब जहां 150 से अधिक लोग मारे गए थे और करीब 50 हजार लोग बेघर हुए थे. इस दंगे ने मुजफ्फनगर की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित किया बल्कि राज्य के सामाजिक और सियासी समीकरणों को उलट कर रख दिया. माममले को तूल देने के लिए परदे के पीछे से नेताओं ने भी मोर्चा संभाला हुआ था.

आरोप है कि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी क्षेत्र में जाट और मुस्लिम के सियासी गठजोड़ को तोड़ने के लिए इस मामले में जानबूझ कर ढ़िलाई बरती. लेकिन एक समय बाद हालात ऐसे बने कि स्थिति बेकाबू हो गई और दांव उल्टा पड़ गया.

बात 27 अगस्त 2013 की है. दोपहर डेढ़ बजे तक मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील के कवाल गांव में सब कुछ सामान्य था. चौराहे पर चहल-पहल थी. अचानक कुछ युवकों में संघर्ष का शोर सुनाई पड़ा. शानवाज को चाकू लगा. थोड़ी देर में उसकी मौत हो गई. इसी दौरान भागते सचिन और गौरव को भीड़ ने घेर लिया. दोनों को पीटकर मार डाला गया.

कवाल गांव में 27 अगस्त को पास के गांव मलिकपुरा की एक लड़की से छेड़छाड़ को लेकर दोनों समुदाय ऐसे भिड़े कि घंटेभर में मोहल्ले में तीन लाशें गिर गईं. लेकिन कानून ने शिकंजा कसा तो सियासत आड़े आ गई. आनन-फानन में हिरासत में लिए गए कुछ आरोपियों को छोड़ दिया गया. रातोंरात डीएम-एसएसपी के तबादले कर दिए गए. हालात दिन-ब-दिन और बिगड़ते गए. इसी दरमियान न्याय की मांग को लेकर पंचायतों का सिलसिला शुरू हो गया.

पहले खालापार के शहीद चैक पर 30 अगस्त को मुसलिमों ने जुमे की नमाज के बाद शहर में हुड़दंग मचाया तो प्रतिक्रिया में जाट महासभा ने नंगला मंदौड़ में श्रद्धांजलि देने के नाम पर भीड़ जुटाई गई. 7 सितंबर को रैली से लौट रहे लोगों पर हुए हमले में मारे गए लोगों का बदला लेने के लिए प्रतिक्रिया में लाशों के ढ़ेर लगने शुरू हो गए थे.