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नरेन्द्र मोदी और मुसलमान : अब साथ-साथ

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“साल एक शुरुआत अनेक” अपनी सरकार का दूसरा साल शुरू होने पर मोदी ने ये नारा दिया..

और इस शुरुआत के साथ ही न्यूज़ एजेंसी यू.एन.आई को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा कि “नफरत फैलाने वाले भाषण बर्दाश्त नहीं किये जायेंगे”..

हाँलांकी “लव जिहाद और घर वापसी” जैसे  मामलों  में प्रधानमन्त्री ने हमेशा चुप्पी ही साधी रही..

अपनी सरकार के पहली सालगिरह पर मोदी ने 30 मुस्लिम नेताओं से मुलाकात की. और उन्हें विश्वास दिलाया की मुस्लिम समुदाय की ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री की है. नरेन्द्र मोदी और मुसलमान की मुलाक़ात का नतीजा ये रहा कि तीस लाख मुसलमानों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की.

तो क्या ये बदलाव की शुरुआत है?

क्योंकि मोदी पर आज तक कम्युनल होने का आरोप लगता आया है “ये हाथ मुसलामानों के खून से रंगे हैं” विपक्ष हमेशा इस लाइन को भुनाने की कोशिश में लगी रही है. मोदी हमेशा से कम्युनल ही माने गए..2002 के गुजरात दंगों ने कभी प्रधानमंत्री का पीछा नहीं छोड़ा.. जहाँ भी मोदी गए पीछे-पीछे परछाई की तरह ये दंगे भी साथ लगे रहे…

कई साल मोदी मेनस्ट्रीम मीडिया से गायब रहे, क्योंकि ये सवाल कभी मोदी का पीछा नहीं छोड़ते थे.

मुस्लिम समुदाय का विश्वास मोदी पर से उठ गया था. पर क्या अब वो विश्वास वापस लौट रहा है ?

उत्तर प्रदेश में भाजपा में कभी मुस्लिम सदस्यों की संख्या 1 लाख तक नहीं पहुँच पायी थी, पर अब ये आंकड़ा लगभग 1 लाख 75 हज़ार तक पहुँच गया है. तो क्या प्रधानमंत्री अपने और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच की दूरी को ख़त्म करने में सक्षम हो पाए?

दूरी ख़त्म हो गयी है ये कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी..पर हाँ इन आंकड़ो को देखकर ये जरूर कहा जा सकता है की दूरी कम जरूर हुई है. और अब इस कम हुई दूरी का आगे के चुनावों में क्या असर पड़ता है, ये देखना होगा…

मोदी के द्वारा लगातार  अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने की कोशिश की जा रही है. चुनावों को ध्यान में रखते में ये कोशिशें बढ़ गयी है..

अब इंतज़ार इस बात का है की भाजपा इन प्रयासों का कितना फायदा उठा पाती है? आने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव इन सबका जवाब दे देंगे…

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