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आत्मा को यहाँ मिलती हैं आजादी! शिव भगवान का एकमात्र मंदिर जो आत्मा को मुक्ति की गारंटी देता है

Mukteshwar Mandir in Bhuvneshwar

शास्त्र बताते हैं…

व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वह मात्र आत्मा के मोक्ष के बारे में ही सोचता है. वह मोक्ष के लिए दर-दर भटकता है लेकिन कई बार उसको शांति की प्राप्ति नहीं हो पाती है.

तो आज हम आपको बताने वाले हैं एक हिन्दू मंदिर के बारें में जहाँ पर हर हिन्दू को जीवन में एक बार जरूर जाना चाहिए. आप अगर यहाँ पर पहुँचकर शिवनाम का जाप करते हैं तो शास्त्रों में ही लिखा है कि आत्मा को यहाँ जप करने से मुक्ति प्राप्त हो जाती है.

मुक्तेश्वर मंदिर में आत्मा की मुक्ति की गारंटी है

भुवनेश्वर शहर में स्थित मुक्तेश्वर मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ जाने से आत्मा की मुक्ति निश्चित हो जाती है.

10वीं शताब्दी में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. इस मंदिर की सबसे बड़ी बात यह है कि यह धनुष की आकृति का बना हुआ है. अद्भुत वास्तुशिल्पीय शैली में यहाँ हजारों प्रतिमाएं बनी हुई हैं.

मुक्तेश्वर का अर्थ होता है स्वतंत्रता के भगवान. यहाँ स्वतंत्रता का अर्थ आत्मा की मुक्ति से ही है. पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहाँ हर वर्ष तीन दिवसीय नृत्य उत्सव का आयोजन पर्यटन विभाग द्वारा किया जाता है, जहाँ ओडिशा के परंपरागत नृत्य ओडीसी की प्रस्तुति दी जाती है. लेकिन मंदिर की सबसे बड़ी मान्यता यही है कि यहाँ जाने से आत्मा आजाद होती है.

अगर कोई व्यक्ति सच्चे दिल से यहाँ शिव भक्ति करता है और निरंतर जप करता है तो निश्चित रूप से आत्मा हर बार के सांसारिक चक्कर से आजाद हो जाती है.

जहाँ एक तरफ ब्रह्मा को संसार का निर्माण करने वाला बोला जाता है तो वहीँ दूसरी तरफ शिव को जीवन लेने वाला माना जाता है. लेकिन भुवनेश्वर का मुक्तेश्वर संसार का एक मात्र इकलौता ऐसा शिव मंदिर है जो आत्मा की स्वतंत्रता अर्थात मुक्ति की गारंटी देता है.

वैसे कलयुग में आत्मा की मुक्ति का साधन सच्चा नाम और मन्त्र ही बताया गया है इसलिए अगर कोई जीव इस मंदिर में बैठकर शिव नाम या शिव मन्त्र से साधना करता है और सच्चे दिल से मुक्ति की प्राप्ति की कामना करता है तो उस आत्मा को मुक्ति प्राप्त जरुर होती है.

इसीलिए बोला गया है कि हर व्यक्ति को जीवन में एक बार भुवनेश्वर के मुक्तेश्वर धाम में जरुर आना चाहिए.

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