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इस तरह से भगवान गणेश ने एक मूषक को बना लिया अपना वाहन !

गणेश का वाहन

गणेश का वाहन – भगवान गणेश समस्त देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय माने जाते हैं. किसी भी शुभ काम की शुरूआत करने से पहले भक्त भगवान गणेश की पूजा करते हैं और उनसे मंगल की कामना करते हैं.

जिस तरह भगवान गणेश को मोदक अति प्रिय है ठीक उसी तरह चूहा भी उनके लिए बेहद खास माना जाता है. भगवान गणेश हमेशा एक चूहे पर विराजमान रहते हैं क्योंकि चूहे को उनका वाहन माना जाता है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश ने एक मूषक को ही अपने वाहन के रुप में क्यों चुना.

अगर आप नहीं जानते हैं तो चलिए हम आपको बताते हैं शास्त्रों में वर्णित एक पौरणिक कथा, जिसमें ये बताया गया है कि एक चूहा कैसे गणेश का वाहन बना.

ऐसे एक चूहा बना भगवान गणेश का वाहन

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में महर्षि पराशर अपने आश्रम में ध्यान मग्न थे तभी वहां एक शक्तिशाली मूषक पहुंचा और उनका ध्यान भंग करने लगा.

महर्षि पराशर का ध्यान भंग करने के लिए इस मूषक ने आश्रम में रखे वस्त्र, अनाज और ग्रथों को कुतर दिया. उन्होंने उस मूषक को रोकने की काफी कोशिश की लेकिन वो हाथ नहीं आया और पूरे आश्रम को अस्त-व्यस्त कर दिया.

आखिर में उस मूषक से हार मानकर महर्षि पराशर विघ्नहर्ता भगवान गणेश की शरण में पहुंचे. जहां उन्होंने विधिपूर्वक भगवान गणेश का पूजन किया. इस पूजा से प्रसन्न होकर गणेश ने उस उपद्रवी मूषक को पकड़ने के लिए अपना पाश फेंका.

पाश को अपनी तरफ बढ़ते देख वो मूषक वहां से भाग निकला और सीधे पाताल लोक पहुंच गया. बावजूद इसके पाश ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और उसे बांधकर गणेश जी के सामने पेश किया.

गणेश जी की काया को देखकर वो मूषक उनकी स्तुति करने लगा. भगवान गणेश उस मूषक के स्तुतिपाठ से बहुत प्रसन्न हुए और उससे पूछने लगे कि तुमने महर्षि पराशर के आश्रम में इतनी उथल-पुथल क्यों मचाई और उनका ध्यान भंग क्यों किया.

इतने पर भी मूषक कुछ बोलने के बजाय चुपचाप खड़ा रहा. जिसके बाद भगवान गणेश ने उस मूषक से कहा कि अब तुम मेरे आश्रय में हो इसलिए जो इच्छा हो वो मांग लो.

भगवान गणेश की इस बात को सुनकर मूषक के अंदर अहंकार आ गया और वो बड़े गर्व के साथ गणेश जी से बोला कि मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, अगर आप चाहें तो मुझसे कुछ मांग सकते हैं.

मूषक की इस बात को सुनकर भगवान गणेश मुस्कुराते हुए बोले अगर तुम मुझे कुछ देना चाहते हो तो मेरे वाहन बन जाओ. उसी पल से मूषक गणेश जी का वाहन बन गया लेकिन जैसे ही गणेश जी ने मूषक पर पहली सवारी की तो गणेश जी के भारी भरकम देह से वह दबने लगा.

भगवान गणेश का भार पड़ते ही मूषक का सारा घमंड चूर-चूर हो गया और उसने भगवान गणेश से माफी मांगते हुए उनसे अपना भार कम करने के लिए प्रार्थना की. जिसके बाद गणेश जी अपना भार कम कर लिया.

गौरतलब है कि इसी घटना के बाद से मूषक भगवान गणेश का वाहन बनकर उनकी सेवा में लग गया. यही वजह है कि आज भी भगवान गणेश की प्रतिमा के साथ उनका वाहन मूषक भी होता है.