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जानिए क्या है इच्छा मृत्यु और इसके लिए क्यों लेनी पड़ती है कोर्ट से इज़ाजत

इच्छा मृत्यु – बेहतर जीवन की सबसे बड़ी जरूरत होती है स्‍वस्‍थ शरीर जबकि कमज़ोर और गंभीर बीमारी से ग्रस्‍त शरीर से इंसान को केवल निराशा और हताशा ही मिलती है। रोगी व्‍यक्‍ति खुद को असहाय महसूस करता है और ऐसे में वो अपने परिवार के लिए भी बोझ सा बन जाता है।

आज तक दुनियाभर में आपने ऐसे कई मामलों के बारे में सुना होगा जहां परिजनों ने लंबे समय से बीमार अपने किसी संबंधी के लिए इच्छा मृत्यु की मांग की हो।

क्‍या आप जानते हैं कि ये इच्छा मृत्यु क्‍यों मांगी जाती है और ये किसी दी जाती है।

आइए जानते हैं इच्‍छा मृत्‍यु के बारे में..

जब कोई व्‍यक्‍ति सालों से किसी गंभीर या लाईलाज बीमारी से ग्रस्‍त होता है तो उस दर्द से मुक्‍ति दिलाने के लिए डॉक्‍टर और चिकित्‍सा की मदद से मृत्‍यु दी जाती है। मरीज़ की इच्‍छा से उसे मृत्‍यु देना इच्छा मृत्यु कहलाता है। इच्छा मृत्यु को दो श्रेणियों में बांटा गया है – एक सक्रिय और दूसरी निष्‍क्रिय।

सक्रिय इच्छा मृत्यु

इसमें लाईलाज बीमारी से पीडित व्‍यक्‍ति के जीवन का अंत, डाक्‍टर की सहायता से ज़हर का इंजेक्‍शन देने जैसा कदम उठाकर किया जता है। इच्‍छा मृत्‍यु के इस रूप को भारत संहिता सहित दुनिया के अधिकतर देशों में क्राइम माना जाता है। भारत संहिता के अनुसार ऐसे किसी को मृत्‍यु देना हत्‍या है। कुछ देशों में इस रूप को कानून की अनुमति से सक्रिय इच्छा मृत्यु देन का प्रावधान मौजूद है। ये देश हैं फ्रांस और नीदरलैंड।

निष्‍क्रिय इच्छा मृत्यु

इच्‍छा मृत्‍यु के इस रूप में मृत्‍यु देने का तरीका थोड़ा अलग है। जो व्‍यक्‍ति लंबे समय से किसी लाईलाज बीमारी से पीडित है या लंबे समय से कोमा में है तो उसके संबंधियों की सहमति से डॉक्‍टरों द्वारा मरीज़ के जीवन रक्षक उपकरण बंद कर दिए जाते हैं और उसकी मृत्‍यु हो जाती है। ये निष्क्रिय इच्‍छा मृत्‍यु कहलाती है।

भारत में 7 मार्च, 2011 को निष्‍क्रिय इच्‍छा मृत्‍यु को अनुमति दी गई थी। ये फैसला मुंबई की नर्स अरुणा शोनबाग को इच्‍छा मृत्‍यु दिए जाने के लिए दायर याचिका के बाद किया गया था। आपको बता दें कि अरुणा 42 साल तक कोमा में थीं। कोर्ट ने निष्क्रिय इच्‍छा मृत्‍यु की इज़ाजत दे दी थी लेकिन साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों द्वारा इसे असंगत करार दिया गया। इसके बाद से ये मामला संवैधानिक पीठ के पास लंबित था। लेकिन इस बीच ही अरुणा की मृत्‍यु हो गई।

जब लाईलाज बीमारी से पीडित व्‍यक्‍ति खुद के लिए मौत की गुहार लगाता है तो उसे सक्रिय इच्‍छा मृत्‍यु दी जाती है लेकिन जब काई मरीज़ कोमा में हो या अपनी इच्‍छा व्‍यक्‍त करने में असमर्थ हो तो उसके रिश्‍तेदार निष्क्रिय इच्‍छा मृत्‍यु की याचिका दायर करते हैं। ऐसे में निष्क्रिय इच्‍छा मृत्‍यु दी जाती है।

इच्छा मृत्यु चाहे कोई भी हो लेकिन अब तक इसके लिए कोई एक राय नहीं बन पाई है। कुछ तर्क इस मृत्‍यु का समर्थत करते हैं तो कुछ इसका विरोध करते हैं। इच्‍छा मृत्‍यु से पहले का समय स्‍वयं मरीज़ और उसके रिश्‍तेदारों के लिए काफी कष्‍टकारी और दुखदायी होता है।

Parul Rohtagi

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