ENG | HINDI

माता कालरात्रि ! इस बार नवरात्रों के छठे दिन, ऐसे मांगे माता से वरदान

माता कालरात्रि

माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं.

इस बार नवरात्रे आठ दिन के हैं इसलिए माता कालरात्रि की पूजा छठे दिन होनी है. इस दिन अगर कोई साधक माता का मंत्र ध्यान करता है तो उसका ‘सहस्रार’ चक्र खुल सकता है.

इस मन्त्र का करें कम से कम 108 बार जाप

कालरात्रिमर्हारात्रिर्मोहरात्रिश्र्च दारूणा
त्वं श्रीस्त्वमीश्र्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा.

ध्यान मंत्र के बाद भय, संकट व अनिष्ट से रक्षा की कामना के साथ नीचे लिखे कालरात्रि के विशेष बीज युक्त मूल मंत्र का जप करें. कालरात्रि का बीज मंत्र है लीं और पूरा मंत्र है –

लीं क्रीं हुं…
 
पूजा विधि
नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए, फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि (इस बार छठे दिन) का काफी महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं.

सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें, इसके पश्चात माता कालरात्रि जी की पूजा कि जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है.

सप्तमी (इस बार छठे दिन) की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है. इस दिन कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित की जाती है. सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है.

ध्यान
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्.
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्.
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा.
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्.
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

स्तोत्र पाठ
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती.
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी.
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी.
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥