ENG | HINDI

नेहरु की गलती का खमियाज़ा हम आज भी भुगत रहे हैं

Pandit_Jawaharlal_Nehru

1962 में हुआ भारत-चीन का युद्ध जिस में भारत को मिली हार की चोट, अब भारत के लिए एक नासूर बन चुकी हैं.

उस वक़्त के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा चीन के साथ किये गए एक समझौते में भारत ने अपने उत्तरी भारत का लग-भग 65000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा चीन के हाथों गवां दिया था और चीन द्वारा कब्ज़ा किये उसी हिस्से में हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल “मानसरोवर” भी आता हैं. ये जवाहरलाल नेहरु की गलती थी.

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार हिन्दू कैलंडर के आषाढ़ महीने में मानसरोवर में जा कर भगवान शिव की पूजा की जाती हैं.

लेकिन 1962 युद्ध में हुए उस समझौते से सब कुछ बदल गया. समझौते के बाद से हिन्दुओं को अपने तीर्थ स्थान जाने के लिए भी चीन से परमिशन लेनी पड़ती हैं साथ ही मानसरोवर जाने वाले तीर्थ यात्रियों की देख-रेख, सुरक्षा जैसी बातों की ज़िम्मेदारी भी चीनी सेना की होती हैं.

इस वर्ष के आषाढ़ महीने में हिन्दुओं की मानसरोवर यात्रा 22 जून से शुरू हो चुकी हैं. पर इस यात्रा में गए कुछ यात्रियों के अनुसार पुरे तीर्थ यात्रा में बदइन्तजामी का ऐसा आलम हैं कि उनके लिए ये तीर्थ यात्रा मुश्किल बन गयी हैं. मानसरोवर जाने के लिए नाथुला दर्रे वाला रास्ता 22 जून को ही खुला हैं पर भारतीय तीर्थ यात्रियों के लिए  चीन द्वारा दिखाई जा रही इस तरह की बेरुखी से भारत सरकार ने मानसरोवर की यात्रा कर रहे तीर्थ यात्रियों से इस दौरान हुए अनुभवों की एक रिपोर्ट मांगी हैं.

मानसरोवर यात्रा की रेकी टीम के एक सदस्य अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि जब तक हम भारत की सीमा यानि सिक्किम में थे तब तक वह भारतीय सेना और सिक्किम टुरिज़म का इंतज़ाम बहुत अच्छा था. सभी तीर्थ यात्रियों को हर तरह की सुविधा चाहे वह खाने-रहने की हो या स्वास्थ सम्बन्धी, सभी व्यवस्था मुहिया करायी गयी थी. लेकिन मानसरोवर यात्रा का पहला जत्था जैसे ही चीनी सीमा में प्रवेश किया अव्यवस्था का सिलसिला शुरू हो गया.

जत्थे के साथ चलने वाले कुछ सैनिक जो ट्रांसलेटर का भी काम कर रहे थे, उन्होंने ने बताया कि आप जितना हो  सके चीनी सैनिकों से कम बात करे क्योकिं वो आप की बातों का बेरुखी से जवाब देंगे. जब ये जत्था अपने पहले बेस कैंप पंहुचा तो वहां न ही लाइट का इंतजाम था न ही शून्य तापमान में इस्तेमाल करने के लिए गरम पानी का. बेस कैंप में बनाये गए बाथरूम में दरवाज़े तक नहीं थी. यात्रियों की शिकायत के बाद चीनी सैनिकों द्वारा उन पर दरवाजों की व्यवस्था की गयी.

ये नेहरु की गलती का नतीजा है, जिसका खमियाज़ा हम आज भी भुगत रहे हैं.

मानसरोवर यात्रा से लौटा पहला जत्था इस यात्रा में हुए अनुभवों की रिपोर्ट भारत सरकार को भी भेजा हैं.

उम्मीद हैं कि भारत सरकार चीनी सरकार को इस अव्यवस्था की जानकारी ज़रूर देगी ताकि इस यात्रा में जाने बाकि लोगों को वहां फैली इस बदइंतज़ामी से इस तरह परेशान न होना पड़े.