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मेजर शैतान सिंह भाटी : आखिरी सांस तक चीनी सेना के छक्के छुड़ाने वाला परमवीर चक्र से सम्मानित अमर शहीद

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राजस्थान की धरती में एक से एक वीर योद्धा हुए है. यहाँ की मिटटी में ही कुछ खास बात है कि यहाँ के लड़ाके देश की रक्षा के लिए अपनी जान देने से पहले एक पल भी नहीं सोचते.

ऐसे ही एक महान सैनिक की कथा हम आज आपको बताने जा रहे है.

सेना में बहादुरी के सर्वोच्च पुरूस्कार से सम्मानित भारत माता के इस लाल ने युद्ध के मैदान में ऐसा साहस और शौर्य दिखाया के दुश्मन के छक्के छूट गए.

शैतान सिंह भाटी का जन्म राजस्थान के जोधपुर में 1924 में एक राजपूत परिवार में हुआ था.

राजपूत लोगों की बहादुरी से तो पूरा देश ही वाकिफ है, उनकी बहादुरी और देशभक्ति को देखते हुए ही भारतीय सेना में एक पूरी रेजिमेंट इनके नाम से है.

राजपुताना रेजिमेंट को सेना की सबसे बहादुर टुकड़ी माना जाता है.

ये घटना 1962 के समय भारत चीन युद्ध के समय की है. मेजर शैतान सिंह भाटी कुमायूं रेजिमेंट में अपनी टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे. चीन की सेना पूरे दम खम के साथ हमला कर रही थी. विषम परिस्थितियों और संख्या में कम होने के बाद भी मेजर शैतान सिंह दुश्मन सेना से लोहा ले रहे थे.

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अपनी टुकड़ी के सैनिकों की हिम्मत ना टूटे इसके लिए वो खुद एक पोस्ट से दुसरे पोस्ट पर जाकर  अपने सैनिकों की हौंसला अफजाई कर रहे थे.
चीन के हज़ार से भी ज्यादा सैनिकों  के मुकाबले में भारत के कुछ  सौ ही सैनिक थे. लेकिन भारत का एक एक सैनिक चीनी सैनिकों पर भारी पड़ रहा था.

अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाते हुए मेजर बुरी तरह से गोलियों से छलनी हो चुके थे फिर भी उन्होंने अपनी चौकी नहीं छोड़ी. वो अपने अंत समय तक सैनिकों का हौंसला बढ़ाते रहे.

सैनिकों ने चीनी सैनिकों के साथ बिना हथियारों के भी युद्ध किया. मेजर शैतान सिंह के नेत्रित्व में कुमायूं रेजिमेंट की उस टुकड़ी ने तीनों पोस्ट को चीनी सैनिकों से बचा लिया.

बुरी तरह घायल मेजर ने अपनी टुकड़ी के बचे कुचे सैनिकों को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और चीनी सैनिकों से लड़ते लड़ते शहीद हो गए.

अगले दिन चीनी सेना ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी. इस भिडंत में चीन के करीब 1000 सैनिक मारे गए और मेजर शैतान सिंह की 123 सैनिकों की टुकड़ी में से भी अधिकतर सैनिक शहीद हो गए थे.

जब युद्धविराम हुआ तो मेजर शैतान सिंह के मृत शरीर की खोज की गयी. उनका मृत शरीर ठीक उसी जगह पाया गया जहाँ वो आखिर समय चीनी सेना से लड़ रहे थे. उनके हाथ में अभी भी बन्दुक थी और चेहरे पर तेज़ था.

युद्ध की समाप्ति के बाद मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले मेजर शैतान सिंह को सेना में बहादुरी के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र दिया गया. मेजर शैतान सिंह को ये सम्मान मरणोपरांत दिया गया.

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उन्हें दिए गए सम्मान पत्र में लिखा था कि युद्ध क्षेत्र में शैतान सिंह ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया और आखिरी सैनिक के बचने तक उन्होंने दुश्मन सेना से लोहा लिया और अपनी पोस्ट की रक्षा की. ऐसा अद्भुत शौर्य युद्ध के मैदान में कम ही देखने को मिलता है.

मेजर शैतान सिंह के अदम्य साहस और देशभक्ति के लिए उन्हें वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया जाता है.