धर्म और भाग्य

इस महर्षि ने अपने शत्रु के लिए भी अपना सबकुछ दान कर दिया था

महर्षि दधिची – एक बार अगर किसी से दुश्मनी हो जाए तो लोग उससे बात तक नहीं करते, लेकिन पुराने ज़माने में ऐसा नहीं था.

लोग दुश्मनी भुलाकर दूसरों की मदद करते थे. आमतौर पर ये आदम ऋषियों की होती थी. वो देवता और दानव दोनों को सामान नज़रों से देखते थे. ऐसे ही एक ऋषि थे उस समय के जिन्होंने सबकी मदद की.

इस ऋषि का नाम है महर्षि दधिची. इनकी माता का नाम शांति था. एक बार महर्षि दधिची बड़ी ही कठोर तपस्या कर रहे थे . इनकी अपूर्व तपस्या के तेज से तीनो लोक आलोकित हो गये और इंद्र का सिंहासन हिलने लगा .

इंद्र को लगा कि महर्षि दधिची अपनी कठोर तपस्या के द्वारा इंद्र पद छीनना चाहते है. इंद्रा को ये जान बहुत गुस्सा आया.

ऋषि की तपस्या में बाधा डालने के लिए इंद्र ने कुछ लोगों को भेजा.  इसलिए उन्होंने महर्षि दधिची की तपस्या को खंडित करने के उद्देश्य से परम रूपवती अल्म्भुषा अप्सरा के साथ कामदेव को भेजा.

अल्म्भुषा और कामदेव के अथक प्रयत्न के बाद भी महर्षि अविचल रहे और अंत में विफल मनोरथ होकर दोनों इंद्र के पास लौट गये.  इंद्र उन्हें वापस देखकर बहुत ही निराश और परेशान हो गया.

इंद्र ने कामदेव और अप्सरा को वापस देखकर उनपर खूब क्रोधित हुआ. कामदेव और अप्सरा के निराश होकर लौटने के बाद इंद्र ने महर्षि की हत्या का निश्चय किया और देव सेना को लेकर महर्षि दधिची  के आश्रम पर पहुचे. वहा पहुचकर देवताओ ने शांत और समाधिस्थ महर्षि दधिची पर अपने कठोर अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करना शुरू कर दिया.

देवताओ के द्वारा चलाए गये अस्त्र-शस्त्र महर्षि की तपस्या के अभेद्य दुर्ग को ना भेद सके और महर्षि अविचल समाधिस्थ बैठे रहे. इंद्र के अस्त्र-शस्त्र भी उनके सामने व्यर्थ हो गये. हारकर देवराज स्वर्ग लौट आये.

ऋषि की हत्या का प्लान बनाने वाले इंद्र ऋषि के शत्रु हुए, लेकिन वही ऋषि इंद्र की मदद करके सारा माज़रा ही बदल दिए. इंद्र को एक किसी की हत्या का प्रकोप झेलना पड़ा. वो व्यक्ति किसी ऋषि का ही पुत्र था. वृतासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोडकर देवताओ के साथ मारे मारे फिरने लगे.  ब्रह्मा जी की सलाह से देवराज इंद्र महर्षि दधिची के पास उनकी हड्डिया मांगने के लिए गये. उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए उनकी हड्डियाँ मांग लीं.

आपको विश्वास नहीं होगा, लेकिन उस ऋषि ने जिसके मौत की व्यूह रचना खुद इंद्र कर रहे थे, उसी इंद्र को ऋषि ने अपनी हड्डियाँ दे दीं. महर्षि दधिची की हड्डियों से व्रज का निर्माण हुआ जिससे वृतासुर मारा गया. इस प्रकार एक परोपकारी ऋषि के अपूर्व त्याग से देवराज इंद्र बच गये और तीनो लोक सुखी हो गये.

ऐसा कार्य और किसी ने नहीं किया. इसलिए कहा जाता है कि दुश्मनों को भी दोस्त ही समझें क्योंकि असल में वो भी आपके जैसे ही हैं. कभी भी आप ये न सोचें की वो आपको क्या दे रहा है, बल्कि उसे देने के बारे में आप सोचें. तभी आपका और इस समाज का कल्याण होगा.

ये थे महर्षि दधिची –  जो व्यक्ति इस तरह के कम में संलग्न रहता है, उसे ही जीवन में सुख की अनुभूति होती है. अगर आप भी अपने जीवन में ख़ुशी खोज रहे हैं तो ये ज़रूर करें.

Shweta Singh

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