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इस नवरात्रे दूसरे दिन ही करनी है तीसरे दिन की पूजा ! माँ चंद्रघंटा की पूजन विधि

माँ दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है.

इस बार नवरात्रों में इनकी पूजा दूसरे ही दिन की जा रही है.

दो तिथियाँ एक साथ मिल जाने के कारण साल 2016 के नवरात्रे आठ दिनों के हैं. नवरात्री-उपासना में दूसरे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन-आराधना किया जाना है.

इनका यह स्वरुप परम शक्तिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक में घंटे के आकर का अर्धचन्द्र है इसलिए इनको माँ चंद्रघंटा बोला जाता है.

माँ चंद्रघंटा के दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है. माँ चंद्रघंटा को युद्ध की मुद्रा में बैठा माना जाता है.

इसीलिए यह माता शत्रुओं का नाश करने वाली और युद्ध में विजय दिलाने वाली देवी माना जाता है. इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करें. इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं.

पूजन विधि
माता की चौकी ‘बाजोट’  पर माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें. चौकी पर चांदी,  तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें. इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारामां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें. इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें. तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें.

ध्यान मन्त्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्|
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्|
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्|
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्|
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्|
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्|
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्|
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

Chandra Kant S

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