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इंडिया का ये आशिक अपने प्यार की खातिर साइकिल से यूरोप पहुँच गया !

के पी के महानंदिया

लैला-मजनू, हीर-राँझा, शीरी-फरहाद और रोमियो-जूलियट की अमर प्रेम कहानियों के किस्से हमने सुन रखे होंगे।

लेकिन क्या आप जानते है इन लोगों की तरह ही एक दीवाना लड़का भारत में भी हुआ है, जो अपने प्यार के खातिर साइकिल से यूरोप पहुँच जाता है।

जी हाँ, ये किसी फिल्म की कहानी नहीं है बल्कि सच्चाई है। ये कहानी भारत के पी के महानंदिया उर्फ़ पीके की है जो अपनी प्रेमिका चार्लोट वॉन शेड्विन से मिलने साइकिल से स्वीडन पहुँच जाता है।

दरअसल इस कहानी के हीरो के पी के महानंदिया है जो आर्ट्स में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली की सड़कों पर पोर्ट्रेट बनाने का काम करने लगते है। अपने बेहतरीन आर्ट्स की बदौलत के पी के महानंदिया एक मशहूर चित्रकार बन जाते है। एक बार जब 1975 में स्वीडन के एक राजघराने की लड़की चार्लोट भारत घुमने आई। दिल्ली में चार्लोट को एक मशहूर पोर्ट्रेट आर्टिस्ट के बारे में पता चला तो उससे रहा नहीं गया और वह के पी के महानंदिया के पास अपना पोर्ट्रेट बनवाने पहुँच गई।

चित्रकारी के दौरान के पी के महानंदिया की सादगी चार्लोट को भा गई। पीके को भी चार्लोट पहली ही नज़र में पसंद आ गई थी। दोनों को प्रेम हुआ और उन्होंने शादी कर ली।

लेकिन वीज़ा ख़त्म होने की वजह से चार्लोट को अपने देश स्वीडन लौटना पड़ा।

के पी के महानंदिया

वापस जाते वक्त चार्लोट ने के पी के महानंदिया को साथ चलने को कहा लेकिन परिस्थियाँ कुछ ऐसी हो गई की पीके उस समय चार्लोट के साथ स्वीडन नहीं जा पाए। लेकिन उन्होंने वादा किया कि एक दिन वह जरुर चार्लोट के पास आयेंगे। चार्लोट स्वीडन लौट गई और पीके अकेले ही रह गए। दो सालों तक वे एक-दूसरे से चिट्ठियों के जरिये बात करते रहे।

के पी के महानंदिया से रहा नहीं गया और वो चार्लोट से किसी भी हालत में मिलना चाहते थे। लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे हवाई जहाज का टिकट खरीद सके। तब उन्होंने अपने पास जितनी भी चीजे थी सभी को बेचकर एक सेकंड हैंड साइकिल खरीदी। और चल निकले अपनी प्रेमिका से मिलने स्वीडन।

के पी के महानंदिया

22 जून 1977 को उन्होंने अपना सफर शुरू किया वो रोजाना करीब 70 किलोमीटर साइकिल चलाते थे। के पी के महानंदिया अपने सफर के बारे में बताते है ‘रास्ते का खर्च उठाने के लिए मैंने अपनी कला का इस्तेमाल किया। मैं लोगों की तस्वीरें बनाता और वो कुछ पैसे दे देते कुछ लोगों ने भोजन और रहने की जगह भी दी।

उस समय दुनिया बहुत अलग थी उस वक्त ज्यादातर देशों में दाखिल होने के लिए उन्हें वीज़ा की जरुरत नहीं पड़ी। पीके ने दिल्ली से अपना सफर शुरू किया और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की, बुल्गारिया, युगोस्लाविया, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क जैसे देशों को लांघते हुए यूरोप के स्वीडन पहुँच गए।

साइकिल से पीके को इतना लंबा सफ़र तय करने में 5 महीनों का वक्त लगा।

के पी के महानंदिया

इतनी लंबी दूरी तय करने के बाद जब पीके गोथनबर्ग पहुंचे। पीके को वहां देखकर स्वीडन के अधिकारी चौंक गए कि एक व्यक्ति इतनी दूर साइकिल से पहुँच गया था। उसने अधिकारियों को अपनी शादी की तस्वीरें दिखाई। उस वक्त अधिकारियों को यह यकीन नहीं हुआ कि उनके राजघराने की लड़की ने किसी गरीब से शादी कर ली।

जब के पी के महानंदिया के पहुँचने की खबर चार्लोट को मिली तो वह भागी-भागी अपने पति का स्वागत करने पहुंची।

इस तरह के पी के महानंदिया चार्लोट से मिल गए और बाद में वे पूरी तरह स्वीडन में ही रहने लगे।

अब उनके दो बच्चे भी है। के पी के महानंदिया और चार्लोट आज भी एक-दूसरे को उतना ही प्यार करते है जितना की 1975 में किया करते थे। के पी के महानंदिया की कहानी मिशाल है उन लोगों के लिए जो किसी से बेइंतेहा प्यार करते है। और सबक है उन लोगों के लिए जो जरा सी विपरीत परिस्थितियों में ही अपने प्यार का साथ छोड़ देते है।