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कौरवों के दोस्त कर्ण का अंतिम संस्कार भगवान् कृष्ण ने क्यों किया था ?

आजतक के इतिहास में महाभारत एक मात्र ऐसा युध्द रहा है जो बहुत ही भयानक और सबसे ज्यादा दिन तक चला. ये मात्र एक ऐसा युध्द था जिसमें हज़ारों लोगों की मृत्यु हुई और ऐसे लोग मौत के घाट उतारे गए, जो पढ़े-लिखे, ज्ञानी और महारथी थे. इस युध्द में समाज का बहुत बड़ा नुक्सान हुआ. १६ साल से लेकर बूढ़े तक इस युध्द की बलि चढ़ गए. कौरवों की ओर से इस युध्द में कर्ण ने बहुत बड़ा योगदान दिया था. आखिर फिर एस अक्य हुआ कि पांडवों के दुश्मन को भगवान् कृष्ण ने अंतिम विदाई दी?

महाभारत में कर्ण एक ऐसा पात्र था जो बहुत ही ज्ञानी और बलवान था, लेकिन उसकी किस्मत बुरी थी कि शादी से पहले पैदा हो गया और उसकी माँ कुंती नें उसे यूँ ही छोड़ दिया. क्षत्रीय कुल में पैदा होने के बाद भी उसके साथ जाति का भेदभाव सहना पड़ा. इसका सबसे बड़ा कारण था कि उसकी माँ ने दुनिया के सामने उसे पुत्र के रूप में स्वीकार नहीं किया. वो इस बात से डरती थीं कि अगर ऐसा कुछ सबके सामने आया तो समाज में उनके पिता की बड़ी बदनामी होगी. बा दमन जब कुंती की शादी हो गई और उन्हें ५ पुत्र हुए तो और वो इस बात की छुपा गई, क्योंकि वो जानती थी कि उस अवैध पुत्र को देखकर बाकी के पुत्र बहुत दुखी होंगे और राज्य का बंटवारा ५ लोगों में नहीं बल्कि ६ में करना होगा. कर्ण के जन्म के समय कुंती ने गलती तो कर दिया था, लेकिन किसी भी तरह से उस गलती को दुनिया के सामने स्वीकार नहीं करना चाहती थीं.

आज हम आपको बताएंगे कि भगवान् कृष्ण जो की अर्जुन को अपना दोस्त भी मानते थे तो उसके दुश्मन का अंतिम संस्कार क्यों किया. दरअसल कर्ण सिर्फ कुंती का बेटा ही नहीं था बल्कि वो कृष्ण का भाई भी था. जी हाँ, फुफेरा भाई. कुंती भगवान् कृष्ण की बुआ थी. कर्ण एक ऐसा पात्र था महाभारत में, जो देव पुत्र होने के बावजूद भी सामाजिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा और उसको. समाज में अस्वीकार किया गया. भगवान् कृष्ण जानते थे कि कर्ण एक महान योद्ध और दानी राजा था. कर्ण ने कुरुक्षेत्र में अपने भाइयों (पांडवो) को छोड़कर कौरवों का साथ दिया था, क्योंकि पांडव उसे अपने साथ नहीं लिए. भगवान्व कृष्ण को ये बात पता थी. वो कर्ण की महानता से वाकिफ थे. कुंती और सूर्य का पुत्र था कर्ण, . कुंती ने कर्ण को अविवाहित होते हुए जन्म दिया था. ये बात भगवान् कृष्ण जानते थे. भगवान् जानते थे कि कर्ण सूत पुत्र नहीं हैं.  कृष्ण ये जानते थे कि  एक रथ सारथी ने कर्ण का पालन किया था, जिसके कारण कर्ण सूतपुत्र कहा जाता था. अविवाहित माता से जन्म और रथ सारथि के पालन के कारण कर्ण को समाज में ना तो सम्मान मिला और ना अपना अधिकार मिला. कर्ण के सुतपुत्र होने के कारण द्रोपदी, जिसको कर्ण अपनी जीवन संगनी बनाना चाहता था, उसने कर्ण से विवाह से इंकार कर दिया था.

भगवान् कृष्ण के कारण ही कर्ण की मौत हुई थी. भगवान कृष्ण ने ही अर्जुन को कर्ण के वध का तरीका बताया था. इसी तरीके से ही कर्ण का वध हुआ. एक दानवीर राजा होने के कारण भगवान कृष्ण ने कर्ण के अंतिम समय में उसकी परीक्षा ली और कर्ण से दान माँगा तब कर्ण ने दान में अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिए.

कर्ण की दानवीरता के खुश होकर भगवान् कृष्ण ने उसे अंतिम विदाई दी. इसलिए भगवान् कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार किया.