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इस वजह से भगवान गणेश को धारण करना पडा एक स्त्री का रुप !

गणेशजी का स्त्री रुप

गणेशजी का स्त्री रुप – पौराणिक कहानियों में कई ऐसे देवताओं का जिक्र मिलता है जिन्हें किसी ना किसी वजह से स्त्री का रुप धारण करना पड़ा था.

कहा जाता है कि सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा, रामभक्त हनुमान, देवराज इंद्र और अर्जुन को स्त्री रुप धारण करना पड़ा था. हालांकि इन सबके पीछे कोई ना कोई ठोस वजह रही है.

लेकिन ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि सर्वप्रथम पूजनीय भगवान गणेश को भी एक बार स्त्री रुप धारण करना पड़ा था.

तो चलिए हम आपको बताते हैं कि गणेशजी का स्त्री रुप क्या था – गणेशजी के स्त्री रुप धारण करने के पीछे की पौराणिक कथा.

गणेशजी का स्त्री रुप

गणेशजी के स्त्री रुप का नाम है विनायकी

देवों के देव महादेव और माता पार्वती के पुत्र गणेशजी के स्त्री रुप का वर्णन पुराणों में भी किया गया है. विनायक गणेश के इस स्त्री रुप को विनायकी के नाम से जाना जाता है.

धर्मोत्तर पुराण में गणेशजी का स्त्री रुप विनायकी का वर्णन किया गया है इसके अलावा वन दुर्गा उपनिषद में भी गणेश जी के स्त्री रूप का उल्लेख मिलता है, जिसे गणेश्वरी का नाम दिया गया है.

गणेशजी का स्त्री रुप – पुराणों में दर्ज एक कथा के अनुसार

दरअसल एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अंधक नाम के दैत्य ने जबरन माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी बनाने की कोशिश की, ऐसे में मां पार्वती ने सहायता के लिए अपने पति शिव जी को बुलाया.

अपनी पत्नी की इस दैत्य से रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने अपना त्रिशूल उठाया और उसके आर-पार कर दिया. लेकिन अंधक की मृत्यु नहीं हुई बल्कि त्रिशूल के प्रहार से उसके रक्त की एक-एक बूंद से राक्षसी अंधका का निर्माण होता चला गया.

यह देख माता पार्वती को एक बात तो समझ में आ गई थी और वो ये कि हर एक दैवीय शक्ति के भीतर दो तत्व मौजूद होते हैं. पहला पुरुष तत्व जो उसे मानसिक रूप से सक्षम बनाता है और दूसरा स्त्री तत्व, जो उसे शक्ति प्रदान करता है.

इसके बाद माता पार्वती ने उन सभी देवियों को आमंत्रित किया जो शक्ति का ही रूप हैं. उनके बुलाने पर हर दैवीय ताकत स्त्री रुप में वहां उपस्थित हो गईं और अंधक दैत्य के खून गिरने से पहले ही अपने भीतर समा लिया जिसके कारण राक्षसी अंधका का उत्पन्न होना कम हो गया.

लेकिन फिर भी अंधक के गिरते हुए रक्त को खत्म करना जब संभव नहीं हो रहा था तब भगवान गणेश को मैदान में उतरना पड़ा और वो भी अपने स्त्री रुप में.

विनायकी के रुप में प्रकट होकर गणेशजी ने अंधक का सारा रक्त पी लिया. इस तरह से गणेश समेत सभी दैवीय शक्तियों के स्त्री रुप की मदद से अंधका का सर्वनाश संभव हो सका.

गौरतलब है कि गणेशजी का स्त्री रुप विनायकी को सबसे पहले 16वीं सदी में पहचाना गया था. उनका यह स्वरुप देखने में बिल्कुल माता पार्वती जैसा ही था. अगर कोई अंतर था तो वो सिर्फ सिर का था क्योंकि गणेश जी की तरह ही विनायकी का सिर भी गज के सिर से बना हुआ था.