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भारत के इस मंदिर में विराजमान है बिना सूंड वाले भगवान गणेश !

बिना सूंड वाले भगवान गणेश

बिना सूंड वाले भगवान गणेश – प्रथम पूजनीय विघ्नहर्ता भगवान गणेश के पूरे शरीर के हिस्से में उनका प्रमुख अंग है उनका सूंड. पौराणिक गाथाओं के अनुसार भगवान गणेश के मस्तक के कट जाने के बाद उन्हें हाथी का मुख लगाया गया था.

मान्यताओं के अनुसार गणेश जी की सूंड को भविष्यवक्ता माना जाता है. कहते हैं कि गणपति जी अपनी सूंड से भविष्य में होनेवाली चीजों को पहले ही भांप लेते हैं.

वैसे देशभर में गणपति बप्पा के कई दिव्य और चमत्कारिक मंदिर मौजूद हैं लेकिन आज हम आपको गणपति जी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां उनका एक अलग ही स्वरुप देखने को मिलता है क्योंकि इस मंदिर में बिना सूंड वाले भगवान गणेश बप्पा विराजमान हैं.

बिना सूंड वाले भगवान गणेश – नाहरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित है यह मंदिर

दरअसल जयपुर के नाहरगढ़ पहाड़ी पर स्थित गणेश जी का यह मंदिर बहुत पुराना है और यह गढ़ गणेश के नाम से देशभर में प्रसिद्ध है. इस मंदिर में बिना सूंड वाले भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है.

350 साल पुराने इस मंदिर में गणेश जी की बाल रूप वाली प्रतिमा स्थित है. बताया जाता है कि नाहरगढ़ की इस पहाड़ी पर महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ किया था और गणेशजी की बाल रुप वाली मूर्ति स्थापित की थी.

कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना के बाद ही जयपुर शहर की नींव रखी गई थी. इस मंदिर की खासियत तो यह है कि इसके पास खड़े होकर पूरे जयपुर के सुंदर नजारे का दीदार आसानी से किया जा सकता है.

इस मंदिर में गणपति जी की प्रतिमा को इस तरह से स्थापित किया गया है कि इसका सीधा दर्शन जयपुर के इंद्र पैलेस से दूरबीन के जरिए किया जा सकता है.

इस मंदिर में करीब 365 सीढ़ियां हैं इन सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के वक्त हर रोज एक सीढ़ी बनाई जाती थी और इन सीढ़ियों का निर्माण कार्य एक साल में पूरा हुआ था.

इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि यहां सिर्फ गणपति जी अकेले ही बाल रुप में विराजमान नहीं हैं बल्कि इस मंदिर के रास्ते में एक शिव मंदिर भी आता है जिसमें पूरे शिव परिवार की तस्वीर रखी गई है.

इस मंदिर में स्थापित दो चूहों के कान में अपनी इच्छाओं को जाहिर करने वाले भक्तों की मुराद गणपति जी जल्दी ही पूरी करते हैं.

गौरतलब है कि गणपति जी के इस स्वरुप के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और अपनी मुरादों की झोली भरकर यहां से वापस जाते हैं लेकिन इस मंदिर में गणपति के इस अद्भुत स्वरुप की तस्वीर खींचने पर सख्त पाबंदी है.