भारत

जानें उन खजानों के बारे में, जिन्हें खोजना है बाकी !

किसी ने खजाने का सपना देखा और शुरू हो गई खजाने की खोज.

ये खोज किसी अंजाम तक पहुंचे या न पहुंचे लेकिन खजाने खोजने के लंबे इतिहास का हिस्सा तो बन ही गई है. इतिहास गवाह है कि खजाने की लालसा इंसानी दिमाग में हमेशा से ही रही है और इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए वो दुनिया के एक छोर तक जाने को तैयार रहता है. इतने सालों बाद आज भी कई खजानों के राज़ पता नहीं चल पाए हैं या उन्हें खोजा नहीं जा सका है.

ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा है अंबर रूम का.

इसके लापता होने से पहले इसे दुनिया का आठवां आश्चर्य माना जाता था. रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 18वीं शताब्दी में बनकर तैयार हुआ ये शाही कमरा अंबर स्टोन (बेशकीमती पत्थर), सोने और कांच की बेहतरीन कलाकृति की तरह जाना जाता था. इसकी शाही चमक दुनिया भर में जानी जाती थी. इसे दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजियों ने लूटा और युद्ध की आपाधापी में लूटा गया सोना और जवाहरात कहां चले गए, आज तक पता नहीं चल सका है. इस लूट से लेकर इसे दोबारा मिलने तक के कई दावे वक़्त-वक़्त पर सामने आते रहते हैं. लेकिन अभी भी यकीन से नहीं कहा जा सकता कि ये कहीं ज़मींदोज़ है या सागर की गहराइयों में अपने खोजे जाने का इंतज़ार कर रहा है.

अब बात करते हैं यामाशीता के खजाने के बारे में. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान साउथ ईस्ट एशिया के एक हिस्से में जापानी लूट को ही यामाशीता का गोल्ड या खजाना कहा जाता है. इस लूट में मिली अकूत संपत्ति को इंडोनेशिया के जंगलों की गुफाओं और ज़मीन के नीचे छुपाया गया है. इस खजाने का नाम जापानी जनरल टोमोयूकी यामाशीता के नाम पर रखा गया है. इस खजाने की खोज में पिछले 50 सालों से इंडोनेशिया के अलावा कई और देशों से खोजी जंगल की ख़ाक छान रहे हैं लेकिन आजतक इसका पता नहीं चल सका है.

खजानों के किस्सों में पटियाला नेकलेस का भी खूब नाम आता है.

इस नेकलेस को पटियाला राजघराने के राजा भूपिंदर सिंह के लिए जवाहरात बनाने वाली मशहूर कंपनी कार्टियर ने 1928 में बनाया था. इस नेकलेस में 2930 हीरे जड़े हुए थे. इसकी कीमत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे अबतक की सबसे महंगी जूलरी की तरह जाना जाता है. वहीं, लगभग 50 साल बाद इसका कुछ हिस्सा मिला है लेकिन पूरी तरह ये अबतक नहीं मिल पाया है. इसकी कीमत तकरीबन 1 अरब 54 लाख रूपए आंकी गई है.

खजाने की खोज – दुनिया भर में हीरों के शहर के नाम से पहचाने जाने वाले बेल्जियम के शहर एंटवर्प, 2003 में तब सुर्खियों में आया, जब वहां हीरों की डकैती पड़ी. कुछ फिल्मी अंदाज़ में पड़ी डकैती को इतने शातिराना तरीके से अंजाम दिया गया कि शहर में हीरों की सिक्युरिटी के लिए बनाई गई स्पेशल फोर्स को भी इसकी भनक नहीं लगी. लूट में लगभग साढ़े 7 अरब रूपए कीमत के हीरों पर हाथ साफ़ किया गया. इस लूट को सदी की लूट माना जाता है.

वहीं, ये हीरे आज कहाँ हैं इस बात का आजतक पता नहीं चल सका है. खजाने की खोज जारी है.

Devansh Tripathi

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