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इंडिया में यहाँ लिव-इन-रिलेशन का कल्चर पहले से हैं

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भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए अभी तक न तो कोई कानून बना हैं ना यहाँ का समाज इसे स्वीकार कर  पाया हैं.

लेकिन राजस्थान में एक ऐसी जगह हैं, जहाँ जोड़े लिव-इन-रिलेशन में रहते हैं.

राजस्थान के आबू सड़क में स्थित कई ऐसे आदिवासी गाँव हैं जहाँ कई जोड़े बिना विवाह किये ही एक साथ रहते हैं और बिना विवाह किये साथ रहने की परमपरा कई ज़माने से चली आ रही हैं.

दरअसल राजस्थान में अप्रैल महीने में होने वाले गणगौर मेले से जोड़े चुनने की ये प्रथा शरू होती हैं.

गणगौर मेले में लड़के-लड़किया मिलते हैं. अपनी पसंद के हिसाब से अपने साथी का चुनाव करते हैं और पसंद किये साथी के साथ अपना गाँव छोड़ कर कही दूर जा कर रहने लगते हैं. गाँव से दूर जा कर किसी दुसरे स्थान पर ये जोड़े एक पति-पत्नी की तरह जीवन जीना शुरू करते हैं साथ ही अपने इस दाम्पत्य जीवन की जानकारी अपने गाँव में घर वालो को भेज देते हैं.

गाँव से दूर रहने वाले जोड़ों के बच्चे हो जाने पर इस बात की भी सुचना अपने घर वालों को दी जाती हैं. यदि उनके घरवालें शादी के लिए मान जाते हैं और उनकी घर वापसी के लिए तैयार हो जाते हैं, तो भागे हुए ये जोड़े अपने गाँव वापस आ जाते हैं. मगर किसी कारणवश उन जोड़ों के घर वालें इनकी शादी के लिए राज़ी नहीं होते हैं तो ये जोडें बिना शादी किये ही लिव-इन रिलेशन में गाँव से दूर रह कर अपनी पूरी ज़िन्दगी बिना विवाह किये ही बिताते हैं.

इस पूरी परंपरा में एक और दिलचस्प बात हैं.

हम सब यही देखते आये हैं कि बच्चों की शादी माँ-बाप ही कराते हैं पर इस आदिवासी समाज में बच्चे माँ-बाप की शादी कराते हैं. कई सालो से चले आ रहा यह व्यवहार अब प्रथा का रूप ले चूका हैं. इन जोड़ों से हुए बच्चे जब बड़े हो कर शादी लायक हो जाते हैं तो उनके लिए भी साथी की तलाश की जाती हैं लेकिन ये बच्चे अपनी शादी से पहले अपने माँ-बाप की शादी करवाते हैं. इस शादी के बाद लिव-इन रिलेशन में रह रहे वो जोड़े विवाहित हो जाते हैं और अपने गाँव में जा कर घर में रहने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं. उन जोड़ों के गाँववाले भी उन्हें अपनाकर अपने समाज में जगह दे देते हैं.

राजस्थान के इन जगहों के अलावा भारत के बाकि जगहों में जब लिव-इन रिलेशन की बात होती हैं तो अक्सर दो तरह की बात सामने आती हैं और इन बातों में लिव-इन-रिलेशन के विरोध में ही ज्यादा लोग बात करते हैं.

लेकिन 29 नवंबर 2013 को सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए गए एक बयान में कहाँ हैं कि भारत में प्रचलित विवाह कानूनों पर को ध्यान में रखते हुए ये कह सकते हैं लिव-इन रिश्ता न ही एक अपराध है, नहीं एक पाप है, और संसद को  लिव-इन रिश्ते को विनियमित करने के लिए कानून बनाना चाहिए और घरेलू हिंसा कानून में भी संशोधन करना चाहिए.