Categories: विशेष

पीरियड्स में बिना पैड्स के 42 KM की मैराथन दौड़ गयी

जैसे भूख लगना, प्यास लगना, सांस लेना, पेशाब जाना एक प्राकृतिक क्रिया हैं, उसी तरह माहवारी आना भी एक प्राकृतिक क्रिया ही हैं.

लेकिन पूरी दुनिया में माहवारी को लेकर जिस तरह से लोगों की धारणा बनी हुई हैं, वह उनकी संकीर्ण और छोटी मानसिकता का खुला प्रदर्शन करती हैं. मेरा इस तरह से लोगों पर ऐसा आरोप लगाना ज़रूर अजीब लग सकता हैं, लेकिन इसके पीछे की वजह में आप को बताता हूँ.

अभी हाल ही में लन्दन में “लन्दन मैराथन” आयोजित हुआ था. 42 किलोमीटर लम्बी इस दौड़ में कई लोगों ने हिस्सा लिया था, पर “किरण गाँधी” नाम की एक भारतीय महिला ने इस दौड़ में जो किया वह किसी ने सोचा भी नहीं होगा.

किरण गाँधी ने इस दौड़ में उस वक़्त हिस्सा लिया, जब उनकी माहवारी चल रही थी. किरण द्वारा अपनी माहवारी के दौरान दौड़ में हिस्सा लेना तो सामान्य लग सकता हैं, क्योकि महिलाओं के लिए यह आम बात होती हैं कि वह अपने पीरियड्स में भी सामान्य दिनों की तरह ही अपने रोज़ के काम करती रहे, लेकिन दिलचस्प बात यह थी कि उन्होंने इस दौड़ में पैड का इस्तेमाल किये बिना ही दौड़ी.

कॉस्मोपॉलिटन नाम की एक वुमन्स मैगज़ीन ने किरण गाँधी की इस सोच की काफी सराहना करते हुए उनकी इस ख़बर को प्रमुखता से अपनी मैगज़ीन में उनके कपड़ों में खून लगी तस्वीर के साथ छापा.

किरण ने इस बात की पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी उपलोड करते हुए ऐसा करने के पीछे की वजह लोगों को बताई और कहा कि इस दौड़ से ठीक एक रात पहले मुझे माहवारी शुरू हो गयी और पैड्स के साथ दौड़ में हिस्सा लेना मेरे लिए बहुत मुश्किल था पर दौड़ में हिस्सा लेना भी ज़रूरी था. इसलिए मैंने तय किया कि मैं बिना पैड के ही दौड़ में हिस्सा लुंगी.

किरण अपनी इस सोच के बारे में आगे कहती हैं कि इसके पीछे मकसद यह था कि मैं दूसरी औरतों को यह बताना चाहती थी कि पीरियड्स को लेकर शर्म करने वाली कोई बात नहीं हैं, इसके लिए हमें झिझक महसूस करने के बजाएं गर्व करना चाहियें, क्योंकि यही प्राकृतिक क्रिया हमारें औरत होना के अहसास को पूरा करती हैं. इससे शर्माने के बजाएं प्यार से अपनाएं. हम सब आज इतने आगे बढ़ चुके हैं, फिर भी हमारे समाज में आज भी कई औरतें ऐसी हैं जिनके पास इस तरह के पैड उपलब्ध नहीं होते और महीने के उन दिनों को उन्हें परेशानी मे गुज़ारना पड़ता हैं. अब वक़्त आ गया हैं कि उन महिलाओं की समस्या को समझा जायें और अपनी सोच में बदलाव लाया जायें.

हार्वर्ड बिसनेस स्कूल से पढ़ी किरण गाँधी की इस सोच को जहाँ कई लोगों ने सराहा वही कई लोग ने किरण के इस कदम की जम कर आलोचना भी किया.

लेकिन किरण द्वारा उठाई यह बात काफी हद तक सही भी हैं, क्योकि माहवारी भी तो एक प्राकृतिक क्रिया हैं जिससे हर औरत को गुज़रना होता हैं तो फिर हम इसे एक टैबू की तरह क्यों मानते हैं? हम क्यों इसे लेकर सामान्य सोच नहीं रख सकते? क्यों भारत जैसे देश में आज भी माहवारी के दौरान लड़कियों के साथ अछूतों जैसा बर्ताव किया जाता हैं?

Sagar Shri Gupta

Share
Published by
Sagar Shri Gupta

Recent Posts

इंडियन प्रीमियर लीग 2023 में आरसीबी के जीतने की संभावनाएं

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) दुनिया में सबसे लोकप्रिय टी20 क्रिकेट लीग में से एक है,…

2 months ago

छोटी सोच व पैरो की मोच कभी आगे बढ़ने नही देती।

दुनिया मे सबसे ताकतवर चीज है हमारी सोच ! हम अपनी लाइफ में जैसा सोचते…

3 years ago

Solar Eclipse- Surya Grahan 2020, सूर्य ग्रहण 2020- Youngisthan

सूर्य ग्रहण 2020- सूर्य ग्रहण कब है, सूर्य ग्रहण कब लगेगा, आज सूर्य ग्रहण कितने…

3 years ago

कोरोना के लॉक डाउन में क्या है शराबियों का हाल?

कोरोना महामारी के कारण देश के देश बर्बाद हो रही हैं, इंडस्ट्रीज ठप पड़ी हुई…

3 years ago

क्या कोरोना की वजह से घट जाएगी आपकी सैलरी

दुनियाभर के 200 देश आज कोरोना संकट से जूंझ रहे हैं, इस बिमारी का असर…

3 years ago

संजय गांधी की मौत के पीछे की सच्चाई जानकर पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी आपकी…

वैसे तो गांधी परिवार पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और उस परिवार के हर सदस्य…

3 years ago