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जानिए वो कौन है शख्स जिसके साथ किन्नरों की होती है शादी ?

किन्नरों की शादी

यह जानकर आप दंग रह जाएं कि किन्नर भी वैवाहिक जीवन में बंधते हैं !

मगर यह आश्चर्य कर देने वाली बात सत्य है। क्योंकि शादी, गोदभरायी या गुमशुदा अस्तित्व जीवन वहन कर रहे किन्नरों की शादी होती है। हालांकि इस रहस्यमयी खुलासे के बाद यह जानना आवश्यक हो जाएगा कि वह कौन शख्स है जो किन्नरों के साथ वैवाहिक जीवन का सुख भोगता है।

दरअसल, किन्नरों की शादी के पीछे इतिहास छुपा है।

जहां किन्नरों के साथ ब्याह रचाने वाला शख्स सिर्फ एक दिन के लिए उनके साथ विवाह करता है।

यहां हम किन्नरों के देवता अरावन की बात कर रहे हैं।

अब सवाल यह उठता है की अरावन हैं कौन, किन्नर उनसे क्यों शादी रचाते है और यह शादी मात्र एक दिन के लिए ही क्यों होती है ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए हमे महाभारत काल में जाना पड़ेगा।

इतिहास के झरोखों में देवता अरावन का सत्य ! किन्नरों की शादी !

महाभारत की कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन को द्रोपदी से शादी की शर्त के उल्लंघन के कारण इंद्रप्रस्थ से निष्कासित करके एक साल की तीर्थयात्रा पर भेज दिया जाता है। वहाँ से निकलने के बाद अर्जुन उत्तर पूर्व भारत में जाते है, जहाँ की उनकी मुलाक़ात एक विधवा नाग राजकुमारी उलूपी से होती है। दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है और दोनों विवाह कर लेते है। विवाह के कुछ समय पश्चात, उलूपी एक पुत्र को जन्म देती है। जिसका नाम अरावन रखा जाता है। पुत्र जन्म के पश्चात अर्जुन, उन दोनों को वही छोड़कर अपनी आगे की यात्रा पर निकल जाते हैं। अर्जुन का दोनों को छोड़कर जाने के बाद दोनों नागलोक में जीवन वहन शुरू कर देते हैं। मगर युवा होने पर अरावन, अर्जुन के समीप चला जाता है।  उस वक्त कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध लड़ा जा रहा था।

महाभारत में एक समय ऐसा आता है जब पांडवों को विजय के लिए मां काली के चरणों में अर्पित हेतु  किसी राजकुमार के शीष की जरूरत पड़ती है। इस क्षण अरावन पहल करते हुए आगे आ जाता है।  मगर अरावन एक शर्त रखता है कि वो अविवाहित नहीं मरेगा।

अरावन की इस शर्त के कारण बड़ा संकट उत्पन्न हो जाता है। क्योंकि सभी राजा यह जानते थे कि अरावन के साथ ब्याह रचाने की अगली सुबह उनकी बेटी विधवा हो जाएगी। इस दुविधा में श्री कृष्ण स्वंय को मोहिनी रूप में बदलकर अरावन से शादी करते है। अगले दिन अरावन स्वयं अपने हाथों से अपना शीश माँ काली के चरणो में अर्पित करता है। अरावन की मृत्यु के पश्चात श्री कृष्ण उसी मोहिनी रूप में काफी देर तक उसकी मृत्यु का विलाप भी करते है।

गौरतलब है कि देवता अरावन को तमिलनाडु में विशेष सम्मान दिया जाता है। क्योंकि तमिलनाडु में इनकी अर्चना होती है व भारत के कई राज्यों में इन्हें इरावन नाम से पुकारा जाता है। किन्नरों के देवता होने से किन्नरों को दक्षिण भारत में अरावनी कहा जाता हैं

वैसे तो अब तमिलनाडु के कई हिस्सों में भगवान अरावन के मंदिर बन चुके है पर इनका सबसे प्राचीन और मुख्य मंदिर विल्लुपुरम जिले के कूवगम गाँव में है जो की कोथआंदवर मंदिर (Koothandavar temple) के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान अरावन के केवल शीश की पूजा की जाती है।

इस तरह से होती है किन्नरों की शादी – यह कारण है किन्नर, जो की स्त्री रूप में पुरुष माने जाते है अरावन से एक रात की शादी रचाते है और उन्हें अपना आराध्य देव मानते है।