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अचानक एक सांसद ने खड़े होकर नेहरू को कहा कि अपना सर काटकर भी उनको दे आओ ! नेहरू शर्म से हो गये थे पानी, यह होती है देशभक्ति

Jawaharlal Nehru Spoke On Defeat Of China War

चीन से 1962 के युद्ध में भारत को हार का सामना पड़ा है.

चीन ने हमारी हजारों वर्ग मील की जमीं भी अपने कब्जे में ले ली थी. लेकिन तबकी हमारी सरकार को इस बात का कोई गम नहीं हुआ था. तब देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे और रक्षा मंत्री इनके ख़ास दोस्त कृष्ण मेनन थे.

कहा जाता है कि युद्ध से पहले ही रक्षा मंत्री ने भारतीय सीमाओं से सेना हटा ली थी और सेना के बजट को भी कम कर दिया था. ज्ञात हो कि उस वक़्त एक घोटाला हुआ था जो सेना के लिए जीप खरीद का था.

वह जीप इतनी खराब थीं कि युद्ध में उन्होंने साथ छोड़ दिया था.

कहते हैं कि चीन से युद्ध भारतीय सेना नहीं हारी थी बल्कि यह युद्ध हमारे राजनेता हारे थे. दे

श की उस वक़्त की राजनीति देश को गुलाम बना देती है. प्रधानमंत्री को तो उस हार से जैसे कि कोई गम ही नहीं था. रक्षा मंत्री विदेशों में घूम रहे थे. और उन दौरों का खर्चा ही लाखों रुपैय हो रहा था.

इस युद्ध के बाद में एक बड़ा ही जबरदस्त किस्सा हुआ, जब संसद में प्रधानमन्त्री नेहरू इस हार पर अपना ब्यान दे रहे थे.

क्या हुआ जब संसद में नेहरू ने यह बोला:-

संसद मे भारत-चीन युद्ध पर चर्चा शुरू हुई तब सभी सांसदों के मुह से जो एक आवाज आ रही थी वह थी कि किसी भी तरह चीन के पास गई 72 हजार वर्ग मील जमीन और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर वापिस आना चाहिए.

उस समय संसद में महावीर त्यागी नाम के एक सांसद थे.

कहते हैं कि पक्ष-विपक्ष दोनों जगह इनका रूतबा काफी था. इन सांसद ने सीधा नेहरू को कहा कि आप ही थे जिन्होंने सीमा पर से सेना हटाई थी. अब आप ही बताए कि आप ये 72 हजार वर्ग मील जमीन को कब वापिस ला रहे हैं?

तब काफी देर से शांत बैठे नेहरू उठे और कहते हैं: – “क्या हुआ अगर वो जमीन चली गई ! चली गई तो चली गई ! वैसे भी बंजर जमीन थी घास का टुकड़ा नहीं उगता था उस पर. क्या करेंगे हम उस जमीन का? ऐसी जमीन के लिए क्या चिंता करना?”

तब नेहरू का यह जवाब देश वक़्त महावीर त्यागी को चुभ जाता है और वह कहते हैं कि नेहरू जी उगता तो आपके सिर पर भी कुछ नहीं है तो इसको भी काट कर चीन को दे दो.

यह सुनते ही प्रधानमंत्री नेहरू को अपनी ग़लती का एहसास होता है और वह शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं. तब शायद उनको याद आता है कि अभी संसद में बहुत से देशभक्त और देश प्रेमी बचे हुए हैं.

आज जेएनयू पर हो रही राजनीति को इसी नजरिये से देखना चाहिए.

पहले तो इस बात की जांच हो कि क्या वाकई में वहां देश विरोधी नारे लगे हैं और जिसने भी यह कार्य किया है कानून को उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए.

तब तक देश के नेताओं को इस घटना की निंदा करनी चाहिए ना कि इस तरह के विचारों वालों का सम्मान करना चाहिए.